कानपुर। डॉ, अरविंद कुमार, वैज्ञानिक एवं डॉ, अशोक कुमार, अध्यक्ष, के, वी, के, दलीपनगर। गर्मी के दिनों में तरबूज अत्यंत लोकप्रिय फल है। इसके फल पकने पर काफी मीठे एवं स्वादिष्ट होते हैं। इसकी खेती हिमालय के तराई क्षेत्रों से लेकर दक्षिण भारत के राज्यों तक विस्तृत रूप से की जाती हैं। इसके फलों के सेवन से लू नहीं लगती है। इसके रस को नमक के साथ प्रयोग करने पर मूत्राशय में होने वाले रोगों से आराम मिलता है। तुडाई एवं उपज _तरबूज में तुडाई बहुत महत्वपूर्ण है। तरबूज के फल का आकार एवं डँठल के रंग को देखकर उसके पकने की अवस्था का पता लगाना बडा मुश्किल है। पके हुए फलों की पहचान निम्न प्रकार से की जा सकती है। जमीन से जुड़े हुए फल के भाग का रँग परिवर्तन देखकर (फल का रँग सफेद से मखनियाँ पीले रंग) का हो जाता है। पके फल को थपथपाने से धब _धब की आवाज आती है तो फल पक जाता है। इसके अलावा यदि फल से लगी प्ररोह पूरी तरह सूख जाए तो भी फल पका होता है। पके हुए फल को दबाने पर कुरकुरा एवं फटने जैसा अनुभव हो तो भी फल पका माना जाता है। फलों को तोडकर ठण्डे स्थान पर एकत्र करना चाहिए। दूर के बाजारों में फल को भेजते समय कई सतहों में ट्रक में रखते हैं और प्रत्येक सतह के बाद धान की पुआल रखते हैं। इससे फल आपस में रगड़कर नष्ट नहीं होते हैं और तरबूजो की ताजगी बनी रहती है। गर्मी के दिनों में सामान्य तापमान पर फल को 10_15 दिनों तक आसानी से रखा जा सकता है। औसतन तरबूज की उपज 400-500 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक होती है।
रिपोर्ट : मधुकर राव मोघे
अक्रॉस टाइम्स हिंदी समाचार पत्र
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