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Sunday, May 23, 2021

जैविक खेती का मुख्य आधार- वर्मी कंपोस्ट

कानपुर। वर्मी कंपोस्ट में पोषको की मात्रा उसे उत्पादित करने वाले केंचुआ की प्रजाति पर निर्भर होती है। वर्मी कंपोस्ट में कार्बन तथा फास्फोरस की मात्रा गोबर की खाद से अधिक पोटेशियम तथा सूक्ष्म तत्वों की मात्रा गोबर की खाद से कम तथा नाइट्रोजन की मात्रा लगभग बराबर होती है।वर्मी कंपोस्ट में गोबर की खाद की अपेक्षा कार्बन नाइट्रोजन अनुपात विस्तृत होता है। *वर्मी कंपोस्ट के लाभ :* 1.केंचुए के द्वारा भूमि की उर्वरता, पीएच, भौतिक दशा ,जैविक पदार्थ ,लाभदायक जीवाणु में सुधार होता है। 2. भूमि की जल सोखने की क्षमता, प्राप्त नमी में वृद्धि एवं मृदा संरचना में सुधार होता है। 3. केंचुए की मल से 2 से 30 टन प्रति एकड़ प्रतिवर्ष जमाव का होना अर्थात 10 वर्ष में 2 इंच मिट्टी पर ऐसे मल की परत जम जाती है। 4. केंचुए की मल से भूमि में चार से पांच गुनी नाइट्रोजन बढ़ जाती है। 5. धनायन विनिमय क्षमता में वृद्धि होती है। 6. खरपतवारओं की कमी। 7. सिंचाई की बचत। 8.फसलों की बीमारी का कम लगना। 9.केंचुए गंदगी फैलाने वाले हानिकारक जीवाणुओं को खा जाते हैं और उसे लाभदायक ह्यूमस में परिवर्तित कर देते हैं। 10. केंचुए जमीन को दिन रात पोली करते हैं जिससे भूमि की जलग्रहण क्षमता में 350% तक की वृद्धि होती है। 11.केंचुए के कारण वातावरण स्वस्थ रहता है। खेती लाभकारी निरंतर बनी रहती है। केंचुए के कारण खेतों में रसायनों उपयोग में और अंततः कीमती ऊर्जा की बचत होती है । वर्मी कंपोस्ट की मात्रा यह हर प्रकार के पेड़ पौधों फल, सब्जियों वृक्षों तथा फसलों के लिए पूर्ण रूप से प्राकृतिक, संपूर्ण एवं संतुलित पोषण खाद है इससे पर्यावरण प्रदूषण की समस्या भी सीमा तक सुलझ सकती है। खेतों में 1 टन प्रति एकड़ वर्मी कंपोस्ट का उपयोग लाभप्रद होता है। गमलों के फूलों के लिए 150 से 300 ग्राम प्रति गमला अथवा पौधा डालना चाहिए। डॉ अशोक कुमार, अध्यक्ष एवं डॉ अरविंद कुमार, वैज्ञानिक केवीके के ने जानकारी दी।         

रिपोर्ट : मधुकर राव मोघे 
अक्रॉस टाइम्स हिंदी समाचार पत्र

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