कानपुर। खरीफ फसलों में धान के बाद मक्का प्रदेश की मुख्य फसल है। मक्का के अंतर्गत अधिकतम क्षेत्रफल वर्षा पर आधारित है जिसके कारण उत्पादकता कम है मक्का की अच्छी उपज के लिए आवश्यक है की समय से बुवाई, निकाई गुड़ाई ,खरपतवार नियंत्रण, उर्वरकों का संतुलित प्रयोग, समय से सिंचाई एवं कृषि रक्षा साधनों को अपनाया जाए। सघन पद्धति अपनाकर संकर प्रजातियों की उपज साधारण सरलता से 30 से 35 कुंतल प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है। साथ ही अल्पावधि की फसल होने के कारण बहु फसली खेतों की खेती के लिए इसका अत्यंत महत्व है। शंकर प्रजातियां गंगा 11, दकन 107 ,प्रकाश , बायो 96 81,DKC91 07, DKC 9108 ,मल्लिका , डिकालव, डबल डिकलव। संकुल प्रजातियां प्रभात, श्वेता सफेद, नवीन, आजाद उत्तम, कंचन। *उर्वरकों का संतुलित प्रयोग* (अ) मात्रा: मक्का की भरपूर उपज लेने के लिए संतुलित उर्वरकों का प्रयोग आवश्यक है। अत: कृषकों को मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। यदि किसी कारणवश मृदा परीक्षण ना हुआ हो तो देर से पकने वाली शंकर एवं संकुल पर जातियों के लिए क्रमशः 120: 60: 60 व शीघ्र पकने वाली प्रजातियों के लिए 100: 60: 40 तथा देशी प्रजातियों के लिए 80:40 :40 किलोग्राम नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए। गोबर की खाद 10 टन प्रति हेक्टेयर प्रयोग करने पर 25% नत्रजन की मात्रा कम कर देनी चाहिए। (ब) विधि: बुवाई के समय एक चौथाई नत्रजन, पूर्ण फास्फोरस तथा फोटोस कुडो में बीज के नीचे डालना चाहिए। अवशेष नत्रजन तीन बार में बराबर बराबर मात्रा में टॉप ड्रेसिंग के रूप में करें, पहली टॉप ड्रेसिंग बोने के 25 से 30 दिन बाद दूसरी नर मंजरी निकलते समय करें एवं तीसरी नर मंजूरी से आधा पराग गिरने के बाद अवस्था संकर मक्का में बुवाई के 50 से 60 दिन बाद एवं संकुल में 45 से 50 दिन बाद आती है। डॉ अरविंद कुमार, वैज्ञानिक एवं डॉ अशोक कुमार ,अध्यक्ष ने बताया।
रिपोर्ट : मधुकर राव मोघे
अक्रॉस टाइम्स हिंदी समाचार पत्र
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