लखनऊ,(पी एम ए)। कोरोना वायरस संक्रमण के प्रोटोकॉल के कारण एम्स गोरखपुर में एमबीबीएस प्रथम वर्ष के 11 छात्र-छात्राओं की कम उपस्थिति को लेकर शीर्ष कोर्ट ने बड़ा निर्णय दिया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर एम्स गोरखपुर में कम उपस्थिति के कारण परीक्षा देने से वंचित रहे 11 छात्र-छात्राओं की फिर से परीक्षा होगी। सुप्रीम कोर्ट ने एम्स गोरखपुर को निर्देश दिया कि वह उन 11 प्रथम वर्ष के छात्रों की परीक्षा आयोजित करे जिनकी उपस्थिति कम थी। परीक्षा से वंचित प्रथम वर्ष के मेडिकल छात्रों को सुप्रीम कोर्ट से मिली बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने एम्स गोरखपुर को निर्देश दिया है कि वह प्रथम वर्ष के 11 याचिकाकर्ता व छात्रों समेत अन्य समान स्थिति वाले छात्रों की परीक्षा आयोजित करे जिनकी अटेंडेंस कम है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रशासन को 11 याचिकाकर्ता व छात्रों समेत अन्य समान स्थिति वाले छात्रों की परीक्षा करानी चाहिए। छात्र अगर परीक्षा में पास होते है तो उनको अगली क्लास में प्रमोट किया जाए। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा इस फैसले को मिसाल के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए। यह परिस्थिति भिन्न है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, "एम्स गोरखपुर में एमबीबीएस प्रथम वर्ष के शॉर्ट अटेंडेंस के छात्रों परीक्षा में बैठने की इजाजत दी जानी चाहिए।" कोर्ट ने याचिककर्ता से ऐसे छात्रों की कुल संख्या बताने को कहा था जिनकी अटेंडेंस कम है। सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता के वकील नेदुम्पार ने कहा था कि उनके क्लाइंट की पर्याप्त अटेंडेंस है और उनको परीक्षा में बैठने की इजाजत दी जानी चहिए। विपक्षी पार्टी के वकील उदित्य बनर्जी ने कहा था कि छात्र की उपस्थिति कोरोना से पहले 60 फीसदी थी और कोविड के बाद वह चार कक्षाओं में उपस्थित हुए। छात्र का तर्क है कि वह क्लास ही नहीं कर सकता क्योंकि वह रिमोट एरिया से आता है। अगर वह चार ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल हो सकता तो वह दूसरी क्लास में भी शामिल हो सकता था। सूप्रीम कोर्ट ने एम्स के वकील से पूछा था कि अगर आप आज सुनवाई में शामिल हो रहे हैं तो क्या आप सभी सुवनाई में शामिल हो सकते हैं। हर रोज कुछ न कुछ तकनीकी दिक्कत आती है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि अब छात्र के पास क्या विकल्प है। इसके बाद एम्स के वकील ने कहा था कि छात्र प्रथम वर्ष का है, लिहाजा अब उसकी अक्टूबर में होने वाली प्रथम वर्ष की परीक्षा में शामिल होना चाहिए। इस बर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि यह 11 छात्रों के भविष्य से जुड़ा मामला है, क्या यह सिर्फ अटेंडेंस का मामला है, क्या कुछ और है।एलसीआइ के वकील के वकील गौरव शर्मा ने कहा था कि एम्स तो एमसीआइ के अधीन नहीं आता है, लेकिन हमारी राय है कि इन छात्रों का एक साल खराब नहीं होना चहिए।
साभार पीएमए न्यूज़ एजेंसी
No comments:
Post a Comment