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Wednesday, August 7, 2019

कथा के समापन पर परम पूज्य संत श्री प्रशान्त प्रभु जी महाराज ने श्री त्रिपाठी जी को शिवमहापुराण पुस्तक भेंट कर आर्शीवाद दिया

  
गौरव शुक्ला ब्यूरो चीफ शाहजहाँपुर
अक्राॅस टाइम्स हिन्दी समाचार पत्र
शाहजहाॅपुर ।। श्रावण मास के पुनीत अवसर पर आदर्श विकलांग कल्याण समिति द्वारा आयोजित शिव महापुराण कथा में व्यांस पीठ का पूजन आरती जनपद के पुलिस अधीक्षक नगर श्री दिनेश चन्द्र त्रिपाठी जी ने सम्पन्न कराया। कथा के समापन पर परम पूज्य संत श्री प्रशान्त प्रभु जी महाराज ने श्री त्रिपाठी जी को शिवमहापुराण पुस्तक भेंट कर आर्शीवाद दिया। श्री त्रिपाठी ने आयोजन की भव्यता को देखकर समिति की सराहना करते हुए कहा कि बाहर से नही लगता है। कि इतना विशाल कार्यक्रम हो रहा है। कथा प्रागण में उपस्थित श्रद्धालुओं को श्री त्रिपाठी ने बताया कि संत के श्री मुख से कथा सुनने के बाद संत के द्वारा बतायी गयी बातों पर अमल भी करना चाहिए। तभी कथा का असली प्रसाद प्राप्त होता है।  कथा प्रागण में व्यास पीठ पर उपस्थित परम पूज्य संत श्री प्रशान्त प्रभु जी महाराज के श्री मुख से भक्तों ने कथा का श्रवण किया। महाराज जी ने घुमेश्वर लिंग के इतिहास का वर्णन किया। महाराज जी ने बताया कि देवगिरि पर्वत क्षेत्र में सुदरमा नामक एक ब्राहम्ण रहता था जिसकी पत्नी का नाम सुदेयहा था। इनकी कोई सन्तान नही थी पुत्र के लिए अपने पति से बार-बार प्रयन्त करने का कहती थी। परन्तु पुत्र न प्राप्त होने के कारण उसने जिद करके अपनी बहन धुष्मा से अपने पति का दूसरा विवाह करा दिया पति ने कहा तुमने मेरा विवाह तो करा दिया है। यदि धुष्मा के कोई सन्तान उत्पन्न हुई तो तुम्हे जरूर ईष्र्या होगी। महाराज जी कहते है। कि धुष्मा ने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। सुदेयहा का मन पुत्र में मग्न रहने लगा। जब वह पुत्र बडा हो गया तो उसका विवाह एक श्रेष्ठ ब्राहम्ण की कन्या से करा दिया गया ये सब देखकर सुदेयहा बहुत दुःखी रहने लगी। तब उसने उस पुत्र का बध करने के बारे में सोचने लगी। एक दिन खाने में विष मिलाकर उस पुत्र को दे दिया। रात में सोते समय वह मृत्यु को प्राप्त हो गया। महाराज जी कहते है तब सुदेयहा ने उसके अंगो को चाकू से काटकर उसी सरोवर में फेंक दिया जिस सरोवर में उसकी माॅ धुष्मा 1100 शिव लिंगो को स्थापित कर विसर्जित कर चुकी थी। धुष्मा को जब यह ज्ञात हुआ तो उसके बिना शिव की निन्दा किये। उस दिन 11 शिव लिंग का निर्माण करके उस सरोवर में विसर्जित कर दिया। जहाॅ पर उसका पुत्र जीवित दिखाई दिया। ठीक उसी समय चन्द्र मोलय भगवान शिवंशकर ने धुष्मा को दर्शन दिए। इस प्रकार वहॅा पर धुष्मेश्वर नामक लिंग के रूप में स्थापित होकर अपने भक्तों का उद्वार करने लगें। कथा प्रागण में कथा के बीच-बीच में महाराज जी द्वारा शिव संकीर्तन हर, हर महादेव शिव शम्भू काशी विश्वनाथ गंगे। एवं जय शिव शंकर शशांक शेखर हर वम हर वम वम वम भोला भवा भयंकर गिरजा शंकर डिम, डिम नृत्यन तेरा। जैसे गाया जाता है। समस्त शिव भक्त शिव मय होकर झूमने लगते है। श्री शिव महापुराण कथा में मुख्य रूप से आमंत्रित अतिथियों ने व्यास पीठ पर भगवान शिव की आरती उतार कर महाराज जी से आर्शीवाद लिया। रामचन्द्र सिंद्यल उमा सिद्यंल शशिकान्त बाजपेई  रूपम बाजपेई डाॅ विजय पाठक मुनेश्वर सिंह प्रधान अशोक कुमार गुप्ता उद्योगपति पुवाॅया विश्व मोहन बाजपेई मुख्य आयोजक हरीशरण बाजपेई कोषाध्यक्ष नन्द कुमार दीक्षित संयोजक नीरज बाजपेई नेहा मिश्रा हिमाशू कश्यप आदि।

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