कानपुर से मधुकर मोघे की रिपोर्ट
अक्रॉस टाइम्स हिंदी समाचार पत्र
कानपुर। आप इसे अन्यथा न ले पर क्या करे हालात ही ऐसे होते है। बताते चले लगभग दो ढाई सौ साल पुरानी यहाँ की होने वाली लीला बताई जाती है पर इस पट्टा छाप लीला मे ऐसा कुछ खास नही बीस साल पहले स्थानीय प्रान्त लोग लीला का मंचन किया करते थे तब कलाकारो को पारिश्रमिक के नाम पर ठेंगा दिया जाता था। अब बाहर से लीलाधारियो को बुला बस लीक पीटी जा रही है। किरण न पूछियेगा असोभनीय सा लगेगा तीर्थ की गरिमा का है सवाल इस संदर्भ में राजू बाबा कहते है एक समय था हमारे पिता श्री सत्यनारायण दीक्षित,लक्ष्मण राव मोघे,शिवदत्त शुक्ला,मथुरा प्रसाद, जैसे मजे हुए लोग लीला बाद ड्रामे का मंचन किया करते थे तब लोग लीला देखने आया करते थे पर अब तो बस ली ला रह गयी है।
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Thursday, October 25, 2018
ब्रह्मावर्तघाट पर राम लीला तो होती है पर दर्शक नदारद
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