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Monday, July 30, 2018

हरिहरेश्वर के दर्शन मात्र से भक्त के मनोरथ सिद्ध होते है

कानपुर से मधुकर मोघे की रिपोर्ट
अक्रॉस टाइम्स हिंदी समाचार पत्र
कानपुर। महाराष्ट्र के कोंकण प्रदेश मे समुद्र किनारे स्थित तीर्थ श्रीवर्धन से महज इक्कीस किलोमीटर की दूरी पर है । एक समय था जब बियाबान जंगल हुआ करता था । अब तो यहाँ  जाने के लिए आटो वगैरह मिल जाते है। बताया जाता है कि श्री हरिहरेश्वर श्री मंत पेशवा के कुलदेवता है।इतिहास कारो के मुताबिक सन् 1723 मे इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। और परिक्रमा मार्ग मे सीढ़ियों का निर्माण जरावली के सूबेदार चंद्रयान मोरे ने करवाया था।छत्रपति शिवाजी महाराज अपने जीवन काल मे दर्शन के लिए आते थे सन् 1674 मे अन्तिम बार उन्होने दर्शन किया था। बताते है कि कनौज के राजा को बंग से विजय दिला वापस सितारा पहुचे तब तक समुन्दर पार कर अंग्रेज भारत मे पैठ बना चुकाथा1765के दौरा पेशवा और अंग्रेजों के बीच समझौता हुआ उसने हरिहरेश्वर मन्दिर की मांग कर दी किन्तु किलेदार रामजी पन्त ने अंग्रेजों को लगाई फटकार और स्पष्ट किया कि सिर कटा लेंगे पर देव स्थान नही देगे यह वह नाजुक वक्त था जब श्रीमंत पेशवा को उदर शूल हो गया तब उनकी सेहत के खातिर नाना साहब पुरन्दरे ने उस व्याधि निवारण की एवज मे सुवर्ण मुखौटा अर्पित करने की मनाती रख दी फलतः वे ठीक हो गए तब काल भैरव को मुखौटा सन्  1733,34 के दौरान चढ़ाया गया। मुखौटा चढाए जाने की परम्परा आज भी कायम है। बाद श्रीमन् ने तोप दागने और उत्सव मनाये जाने का क्रम चालू कर दिया।सन् 1820 तक इस देव स्थान का व्यय श्रीमन् उठाते रहे अब 2मई1953 न्यास ट्रस्ट की स्थापना हुई तब से सारी ब्यवस्था ट्रस्ट ही देखता है।ट्रस्ट अध्यक्ष वामन नारायण बोस एवं उनका परिवार ही देखता है। इस पहाडी देव स्थल तक जाने के लिए सार्वजनिक निर्माण विभाग ने पहाड़ काट कर पक्का डाम्बर रोड निकाला है। अरब सागर की उठने वाली लहरों का कलरव अपने आप मे अजीब सा एहसास कराता है। वर्षा का मौसम होने के कारण चारो तरफ पहाडों से गिरते झरने(जल प्रपात) आपको किसी और लोक का एहसास कराएगा। यहां पहुचने के लिए पूना से मौलसी, निजामपुर, माणगाव ,मह्सला, श्री वर्धन रोडवेज बस तो रत्नागिरी,मुम्बई  अलावा सातारा दिशा से भी जाया जा सकता है।

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