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Monday, August 13, 2018

भगवान शिव को शक्तिहीन और पत्नीहीन देखकर तारक, दैत्य होते थे प्रसन्न: प्रशांत प्रभु

शाहजहाँपुर से गौरव शुक्ला की रिपोर्ट
अक्राॅस टाइम्स हिन्दी समाचार पत्र
शाहजहाँपुर। आदर्श विकलांग कल्याण संस्थान की ओर से खिरनी बाग रामलीला मैदान में चल रही शिव महापुराण कथा के छठवें दिन कथा मर्मज्ञ प्रशांत प्रभु जी ने भगवान शिव जी व माता पार्वती के विवाह की कथा सुनाते हुए बताया कि दक्ष के बाद सती ने हिमालय के राजा हिमवान और रानी मैनावती के यहां जन्म लिया। मैनावती और हिमवान को कोई कन्या नहीं थी तो उन्होंने आदिशक्ति की प्रार्थना की। आदिशक्ति माता सती ने उन्हें उनके यहां कन्या के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। दोनों ने उस कन्या का नाम रखा पार्वती। पार्वती अर्थात पर्वतों की रानी। इसी को गिरिजाए शैलपुत्री और पहाड़ों वाली रानी कहा जाता है।माना जाता है कि जब सती के आत्मदाह के उपरांत विश्व शक्तिहीन हो गया। उस भयावह स्थिति से त्रस्त महात्माओं ने आदिशक्तिदेवी की आराधना की। तारक नामक दैत्य सबको परास्त कर त्रैलोक्य पर एकाधिकार जमा चुका था। ब्रह्मा ने उसे शक्ति भी दी थी और यह भी कहा था कि शिव के औरस पुत्र के हाथों मारा जाएगा। उन्होंने बताया कि भगवान शिव को शक्तिहीन और पत्नीहीन देखकर तारक आदि दैत्य प्रसन्न थे। देवतागण देवी की शरण में गए। देवी ने हिमालय यहिमवानद्ध की एकांत साधना से प्रसन्न होकर देवताओं से कहा. ष्हिमवान के घर में मेरी शक्ति गौरी के रूप में जन्म लेगी। शिव उससे विवाह करके पुत्र को जन्म देंगेए जो तारक वध करेगा। भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए उन्होंने देवर्षि के कहने मां पार्वती वन में तपस्या करने चली गईं। भगवान शंकर ने पार्वती के प्रेम की परीक्षा लेने के लिए सप्तऋषियों को पार्वती के पास भेजा। सप्तऋषियों ने पार्वती के पास जाकर उन्हें हर तरह से यह समझाने का प्रयास किया कि शिव औघड़, अमंगल वेषभूषाधारी और जटाधारी है। तुम तो महान राजा की पुत्री हो तुम्हारे लिए वह योग्य वर नहीं है। उनके साथ विवाह करके तुम्हें कभी सुख की प्राप्ति नहीं होगी। तुम उनका ध्यान छोड़ दो। अनेक यत्न करने के बाद भी माता पार्वती अपने विचारों में दृढ़ रही।उनकी दृढ़ता को देखकर सप्तऋषि अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने पार्वती को सफल मनोरथ होने का आशीर्वाद दिया और वे पुनरू शिवजी के पास वापस आ गए। सप्तऋषियों से पार्वती के अपने प्रति दृढ़ प्रेम का वृत्तान्त सुनकर भगवान शिव अत्यन्त प्रसन्न हुए और समझ गए कि पार्वती को अभी में अपने सती रूप का स्मरण है। सप्तऋषियों ने शिवजी और पार्वती के विवाह का लग्न मुहूर्त आदि निश्चित कर दिया। विवाह के दिन भगवान शिव जी की बारात हिमवान के घर गयी। बावले वर के साथ भूत.प्रेतादि की वह बारात देखकर नगर में कोलाहल मच गया। मैना ने जब सुना तो वह बड़ी दुरूखी हुई और हिमवान के समझाने दृ बुझाने पर किसी प्रकार शांत हुई। यह लीला कर लेने के बाद भगवान शिव अपने सुन्दर और भव्य रूप में परिवर्तित हो गये और माता पार्वती के साथ धूम.धाम से उनका विवाह हुआ। श्री शिवमहापुराण कथा के पहले युवा वर्ग द्वारा स्वामी जी के कर कमलों द्वारा खिरनी बाग रामलीला मैदान में पौधरोपण किया गया। पौधरोपण के दौरान नीरज बाजपेई, शिवाजी गुप्ता, आशीष भरद्वाज, महाऋषि वर्मा मौजूद रहे।इस दौरान अधिशासी अभियंता जल निगम ए पी रावत, मुशेश्वर सिंह (प्रधान), आभा सक्सेना, महेश सक्सेना, उमा सिंघल, राम प्रकाश त्रिवेदी, आरेन्द्र सिंह, श्री कांत मिश्रा, मदन गोपाल गुप्ता, देव प्रकाश मिश्रा, स्वामी सरन, हरिशरण पांडेय, इंद्रपालए रामचन्द्र पांडेय, शिवाकांत बाजपेई, राजपाल राठौर, सोनू तिवारी आदि तमाम लोग मौजूद रहे।


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