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Thursday, December 28, 2017

पत्रकारों को आत्म सम्मान बचाने के लिये प्रयास करना होगा

कश्मीर सिंह

अमूमन देखने में आ रहा है पत्रकारों ने आपस में बंटवारा कर लिया है छोटे पत्रकार,बड़े पत्रकार !मैं आज तक यही नहीं समझ पाया छोटा पत्रकार और बड़ा पत्रकार का मतलब क्या होता है! मुख्य मंत्री से जितने बेहतर ढंग से सवाल रजत शर्मा पूछ सकते हैं उससे कहीं बेहतर ढंग से शशांक श्रीवास्तव सवाल पूछ सकते हैं पर रजत शर्मा बड़े पत्रकार कहे जायेंगे। और शशांक श्रीवास्तव छोटे ! जूनियर, सीनियर तो समझ मे आता है पर बड़ा और छोटा पत्रकार समझ में न आने वाली बात है!आश्चर्य की बात यह है कि यह बँटवारा किसी अन्य ने नहीं स्वयं पत्रकारों ने किया है!एक उदाहरण देता हूँ !मैं फ़िरोज़ाबाद की एक कोतवाली में बैठा था एक पत्रकार बन्धु के साथ उन्ही के काम से गया था!किसी कारणवश थानेदार उन पत्रकार महोदय की मदद नहीं कर पाये !हम लोगों ने थानेदार महोदय की मजबूरी समझी !मेरे साथ आये पत्रकार बन्धु जरूरी कार्य वश चले गये मैं थाने में ही कुछ देर के लिये रूक गया एक बड़े दैनिक समाचार पत्र के पत्रकार महोदय का थाने में आगमन हुआ,थानेदार महोदय उन पत्रकार महोदय से अफसोस जाहिर करने लगे कि फलाँ पत्रकार महोदय आये थे मैं उनकी मदद नहीं कर पाया!बड़े दैनिक समाचार पत्र के पत्रकार महोदय के मुहँ से बेसाख्ता निकला अमाँ छोड़ो ऐसे छोटे मोटे पत्रकारों की चिंता मत किया करो! मुझसे रहा नहीं गया मैने उन पत्रकार महोदय से पूछा ये छोटा ,मोटा पत्रकार क्या होता है!और पत्रकारों की कैटेगिरी बाँटने का अधिकार आपको किसने दिया ! पत्रकार महोदय के पास मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं था !मेरे लिखने का आशय यह है कि पत्रकार बन्धु ही अगर एक दूसरे का सम्मान नहीं करेंगे और प्रशासनिक अधिकारियों तथा पुलिस अधिकारियों के सामने एक दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास करेंगे तो किसी भी पत्रकार का मान सम्मान सुरक्षित नहीं रहेगा! बेहतर होगा पत्रकार बन्धु एक दूसरे का सम्मान करना सीखें तभी पत्रकारों के मान,सम्मान में वृद्धि होगी! संस्थान बड़ा,छोटा हो सकता है!पर पत्रकार बड़ा,छोटा नहीं होता। हो सकता है कुछ पत्रकार बन्धुओं के विचार कुछ बिन्दुओं पर आपस में न मिलते हों !पर आप सम्मान पत्रकार का करते हैं न कि उसके विचारों का! आजकल अक्सर सुनने में आता है!फलाँ नेता, अधिकारी, पुलिस ने पत्रकार से अभद्रता की उसका कारण यही है कि पत्रकार लोग आपस में ही एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे रहते हैं! पत्रकार लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है उसको कौन नीचा दिखा सकता है!बस आवश्यकता है आपस में एकजुट होने की!बड़े,छोटे के भेदभाव को मिटा कर प्रयास करिये कि पत्रकारों का"आत्म सम्मान " बचा रहे ।

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