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Wednesday, December 27, 2017

विवाद का कारण बन रही है, मदरसे की जमीन

-लेखपाल को हटाने की मांग

जावेद आरिफ ब्यूरो चीफ रायबरेली
अक्रॉस टाइम्स हिंदी समाचार पत्र
बछरावां रायबरेली । राजधानी लखनऊ के सिंह द्वारा पर बसा बछरावां कस्बा सदियों से अपनी गंगा जमुनी तहजीब के लिए विख्यात रहा है। आयोध्या में विवादित ढ़ांचा गिरने के बाद पूरे भारत में एक उथल पुथल सी मच गयी थी। लेकिन बछरावां कस्बा सारी साम्प्रदायिक बातों से दूर रहा। और विवाद फैलाने वालों को यहां के बासिन्दे गालियां ही देते रहें। यह ऐसा कस्बा था जहां न्यू हिन्दू मुस्लिम रामलीला अभिनय कमेटी तथा हाफिज रौनी की मजार हिन्दू मुस्लिम एकता के जीवन्त उदाहरण थे। परन्तु बीते कुछ महीनों से इस कस्बे का एक वर्ग विशेष अन्दर ही अन्दर आक्रोशित हो रहा है। इसके पीछे बताया जाता है। कि मुख्य बाजार के अन्दर एक ऐसी जमीन की लिखा पढ़ी है, जिस पर कभी मदरसा संचालित किया जाता था। कुछ दिनों के बाद उस जगह मदरसा चलना बंद हो गया। परन्तु वह जमीन एक वर्ग विशेष के कब्जें में रही। लगभग 6 माह पूर्व बताया जाता है। कि भारतीय जनता पार्टी के मण्ड़ल अध्यक्ष हरिकृष्ण पाण्ड़ेय के परिवार के एक व्यक्ति के नाम उस जमीन की लिखा पढ़ी हो गयी। यह लिखा पढ़ी मौरावां के खत्रियों के द्वारा की गयी कुछ दिन पूर्व जब क्रेता द्वारा उक्त जमीन पर कार्य शुरू करानें का प्रयास किया गया तो मुस्लिम वर्ग द्वारा विरोध दर्ज किया गया। स्थानीय वक्फ सम्पत्ति के देखभाल करनें वाले मोहम्मद शकील मंसूरी नें स्थानीय पुलिस सें गुहार लगायी और अदालत की भी शरण ली गयी। बछरावां थाने में तैनात थानाध्यक्ष अनिल कुमार सिंह द्वारा बगैर दबाव में आय फिलहाल निर्माण कार्य रोंक दिया गया है। उक्त जमीन के विक्रेता का जहां तक सवाल है उसके बारे में बताया जाता है। जंगे आजादी के दौरान बैसवारा के रण बांकुरे राना बेनी माधव के एक साथी ड़ौड़िया के राजा राव राम बक्श सिंह भी थे यह दोनो बहादुर ब्रिटानी हुकूमत को चोअ पर चोट  पहुंचाने का कार्य कर रहें थे। कुछ गद्दारों की शिनाख्त पर राव राम बक्श सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। परन्तु उनकी पहचान करनें के लिए क्षेत्र का कोई व्यक्ति तैयार नहीं हुआ। तब मौरावां के रहने वाले एक खत्री द्वारा उनकी शिनाख्त की गयी और परिणाम स्वरूप अंग्रेजों ने राव राम बक्श सिंह को बरगद के पेड़ में लटकाकर सजाये मौत दे दी। माँ भारती के सपूत से गद्दारी करने के इनाम में मौरावां के खत्रियों में यह बछरावां कौड़ी के दामों में पुरस्कार स्वरूप मिला। उस समय इसमें तीन मुहाल बनाये गये थे। इन खत्रियों के द्वारा यहां कर आदि वसूल जाता रहा। बछरावां कस्बे की मुख्य बाजार आज भी गिरधारा गंज के रूप में जानी जाती है। सन् 1947 में हिन्दूस्तान आजाद हुआा और देश में जमींदार उन्मूलन एक्ट लागू हुआ परन्तु दुर्भाग्य यह रहा कि यह एक्ट केवल देहाती क्षेत्र में प्रभावी हुआ। शहरी क्षेत्र में इसका प्रभाव नहीं पड़ा। इसी बीच जो लोग विभाजन के समय पाकिस्तान चले गये थे सरकार नें नवाबों की जमीनों को शत्रु सम्पत्ति घोषित कर दिया। नवाब महमूदाबाद द्वारा इस एक्ट को अदालत में चुनौती दी गयी काफी कानूनीं दाव पेंच के बाद अदालत में आदेश किया कि जो लोग पाकिस्तान चले गये है केवल उनकी सम्पत्ति शत्रु सम्पत्ति मानमी जायेगी जो लोग यहां रह रहें है। उनकी सम्पत्ति को लेने का सरकार को कोई अधिकार नहीं है। अदालत के इस फैसले नें एक बार तहलका मचा दिया क्योंकि पुराने लखनऊ नगर में नवाब की काफी सम्पत्ति दी जिन पर आज कई अस्पताल और शैक्षिक संस्थान खुले हुए है। इसी आदेश का सहारा लेकर बछरावां के खत्रियों द्वारा बछरावां की ओर ध्यान दिया गया। और उनके वारिसानों द्वारा तहसील महराजगंज में नियमानुसार वरासत करा ली गयी। वरासत होते ही खत्रियों की नजर बछरावां की खाली जमीनों पर पड़ी। हालकिं उन्हें यह भी मालूम नहीं था कि जमीनें कहाँ-कहाँ खाली है परन्तु बछरावां के अवसर वादियों द्वारा खाली जमीनों की औने पौने दाम देकर लिखा पढ़ी करायी जाने लगी। वैसे इससे पूर्व भी काफी भू माफियाओं द्वारा इन खत्रियों से रशीदें लिखवाकर जमीनों पर कब्जा करनें का खेल किया जाता रहा। वरासत होने के बाद यह तो कानूनी दायरे में आ गया पता चला है कि कितने ही लोगों के द्वारा खाली पड़ी जमीनों की इन खत्रियों से लिखा पढ़ी करवा ली गयी जिनमें काफी जमीनें शैक्षिक संस्थाओं के पास है। और तो और इन खत्रियों के बुजुर्गों के द्वारा क्षेत्र मे मालवीय मुंशी चन्द्रिका प्रसाद को काफी जमीनें दान में दी गयी थी जिन पर दयानन्द महा विद्यालय का भवन खड़ा हुआ है। अपनी बुजर्गों की दानवीरता को कलंकित करते हुए खत्रियों के वशंजों द्वारा ड़िग्री कालेज को भी नहीं बक्शा गया। और अच्छी खासी रकम प्रबन्धक तंत्र से एैंठ ली गयी। बताया जाता है कि प्रदेश की भाजपा सरकार से पूर्व एक बड़े नेता द्वारा अपने चहेते एक लेखपाल को यहां तैनात कराया गया। जिसनें इन खत्रियों की प्रतिनिधि का काम किया है। और जैसे ही किसी मकान मालिक नें अपना मकान गिरवाकर नया बनाना चाहा उसे खत्रियों का नोटिस मिल गया और बाद में लेन-देन करनें के बाद ही मामला सुलझ सका। अगर पता लगायी तो इस तरह के लगभग 1 दर्जन मामलें अब तक हो चुके है। मौजूदा समय में विवादित जमीन के बारें में वक्फ सम्पत्तियों की देखभाल कर रहें। शकील मंसूरी का कहना है कि विवादित जमीन को एक पूर्व चेयरमैन द्वारा खत्रियों से खरीदकर मदरसें के लिए दान में दी गयी थी। तब से यह जमीन मुसलमानों के कब्जें में है। वैसे यह मामला न्यायालय के विचाराधीन है। परन्तु अगर प्रशासन द्वारा निष्पक्षता से काम न लिया गया तो बछरावां की शान्ति भी भंग हो सकती है। वैसे क्षेत्र के प्रबुद्ध लोगों की मांग है कि मौजूदा लेखपाल का तत्काल स्थान्तरण किया जाये अन्यथा बछरावां में किसी भी वक्त विवाद उत्पन्न हो सकता है। यह भी पता चला है कि श्री गांधी विद्यालय इण्टर कालेज के कब्जें की कुछ भूमि भी चन्द भू माफियाओं द्वारा इन्हीं खत्रियों से लिखवा ली गयी है और देर सबेर यह जमीन भी विवाद का कारण बनेगी और छात्र शक्ति मैदान में कूदनें पर विवश हो जायेगी।

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