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Saturday, December 30, 2017

ऐतिहासिक धरोहर ।। भोलेनाथ का स्वर्ण प्रकाश से अभिषेक करते हैं भुवन भास्कर

मधुकर राव मोघ   
अक्रॉस टाइम्स हिंदी समाचार पत्र  

नीलकण्ठेश्वर के नाम से विख्यात यह प्राचीन मंदिर अपने आप में शिल्प कला का अनूठा नमूना है। तिथि के मुताबिक जिसकी निर्माण अवधि समाप्त होने पर शिल्पकार संग तरास रामसोवरण मन्दिर शिखर पर आज भी पाषाण की प्रतिमा बन कर रह गया। यहाँ के पुजारी परिवार सदस्य पं अरविन्द भार्गव के मुताबिक़ शिवरात्रि की अल सुबह भगवान सूर्य अपनी पहली किरण से मन्दिर गर्भ ग्रह मे स्थित भोलेनाथ का अपनी आभा से अभिषेक करते हैं। जिसके दर्शन के लिए लाखो की भीड़ उमड़ पडती है। मन्दिर निर्माण के बारे मे भार्गव बताते है । संवत 1116 मे निर्मित इस प्राचीन मन्दिर को बनाने के लिए राजा उदयादित्य महाराज ने आदेश दिया था। बताते चले कि मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र मे विदीसा जिले के तहसील गंज बासोदा निकट उदयपुर मे बने इस मन्दिर की विशेषता का प्रश्न उठता है तो भगवान सूर्य के नामों के अनुरूप मुख्य स्तम्भ घन्टा नुमा बारह राशियों मे विभक्त बारह राशियों साथ ही सत्ताइस नक्षत्रो को पंखुडियो मे दर्शाया गया है।राजा उदयादित्य सम्राट अशोक के अनुयायी थे सो जलाशयों के अलावा कुए एव पथिकों के रहवास के लिए मार्ग किनारे फलदार वृक्ष उगाएं। खजुराहो की तरह प्राचीन को भव्यता प्रदान करने प्रतिमाओ का भाव पुर्ण उत्कीर्ण किया गया। इस भारत देश की सम्पदा को लूटने अक्सर  विदेशी आतताई जिनमे मुगल शासक अलाउद्दीन खिलजी के सिपहसालार मलिक काफूर ने प्राचीर को निस्तेनाबूद करने मे कसर न उठा रखी थी।सन् 1336 से 1338 के बीच अर्थात हिजरी सन् 737 से 739 मुहम्मद तुगलक ने जहाँ मन्दिर को क्षति पहुचाने मे कोइ कोर कसर न रखी थी यहाँ तक की अपने इस्लाम धर्म के प्रचार को लेकर प्राचीन मन्दिर के बगल मे एक मस्जिद का निर्माण ग्यारहवीं सदी में करवाया जो आज भी स्थित है। कुछ समय पहले मन्दिर का शीर्ष भाग का अवशेष ग्वालियर संग्रहालय में रख दिया गया है। वह तो सम्वत 1775 मे मराठा शासन के अभ्युदय के चलते भेलसा सूबे के राजा अप्पा खण्डेराव मन्दिर मे स्थापित विशाल शिव लिंग को पीतल का खोल चढवाया था जिसे तब से ही शिवरात्रि को हटा कर अभिषेक किया जाता है। सूत्रो के हवाले से अब यहाँ ए एस आई का अधिपत्य है जैसा रख रखाव  होना चाहिए वैसा रख रखाव नही दिखता है। फिलहाल इस प्राचीन का कोई सानी नहीं जो ला बलुव पत्थर से बनाया गया है।

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