ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण से ही टूटेगी भुखमरी की दीवार-अदिति सिंह
- ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए उन्हें स्वालम्बी बनाना होगा
जावेद आरिफ ब्यूरो चीफ रायबरेली
अक्रॉस टाइम्स हिन्दी समाचार पत्र
रायबरेली । कल्पना चावला, पी.टी. उषा, मिताली राज जैसी हस्तियों के नाम तो सुने होंगे आपने। इन्होंने न सिर्फ दुनिया भर में अपना नाम रोशन किया। बल्कि देश का मान भी बढ़ाया। राजनीति से लेकर फिल्म व खेल के मैदान में छोटे शहर की लड़कियां तेजी से आगे बढ़ रही हैं। ऐसे में जरूरत है हमें इन जैसी तमाम बेटियों की प्रतिभा को पहचानने, निखारने और उन्हें आगे बढ़ाने की। आज के दौर में गांव की बेटियां, महिलाएं किसी मामले में शहर वालों से कम नहीं। बस उन्हें थोड़े से मार्गदर्शन की आवश्यकता है। मैं अपने विधानसभा क्षेत्र में लगातार ग्रामीण महिलाओं से मिलती रहती हूँ, उनसे बातचीत करती हूँ और उनकी समस्याओं, उनके विचारों को सुनने और समझने का प्रयास करती हूँ। इस दौरान मुझे ऐसा लगा कि ग्रामीण महिलाएं पहले की अपेक्षा तेजी से जागरूक हुई हैं, हर विषय को समझने के उनके नजरिये में तेजी से बदलाव हुआ है। वह अपने मौलिक अधिकारों के प्रति जागरूक हुई हैं। इसलिए समय-समय पर वह सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों से अपने अधिकारों को लेकर लड़ती हुई दिखाई देती हैं। लेकिन महिलाओं के उत्थान में एक छोटी सी लकीर अभी भी खिंची हुई है। जिसको भी मैंने समझने की कोशिश की, वह है समाज की पुरुषवादी सोच। ये सोच कहीं न कहीं आज भी हमारे समाज में व्याप्त है और कई मौकों पर बाहर निकलती हुई दिखाई देती है। ये सोच महिला सशक्तिकरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रही है। आज भी घर का प्रमुख पुरुष होता है। आखिर महिला क्यों नहीं सकती? मैंने देखा है कि कई मौकों पर पुरुषवादी सोच की ओर से महिलाओं को दबाने का प्रयास किया जाता है और उन्हें घूंघट की आड़ के लायक ही समझा जाता है। खासकर ग्रामीण इलाकों में इस तरह की सोच ज्यादा प्रभावी है। इस समस्या के समाधान के बारे में भी मैंने विचार किया हैं। सबसे पहले महिलाओं को स्वालंबी बनाना। स्वालंबन से वह किसी के ऊपर आश्रित नहीं रहेंगी। इससे वह अपने बारे में खुलकर सोच पाएंगी, विचार कर पाएंगी और स्वनिर्णय की क्षमता उनमें विकसित होगी। स्वालंबन के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में सिलाई, कढ़ाई, बुनाई सहित तमाम ऐसे कार्य हैं, जिनको लेकर बैंकों में आसानी से और कम ब्याज पर लोन उपलब्ध है। ऐसे में बस ग्रामीण महिलाओं को इन कार्यों को लेकर जागरूकता की आवश्यकता है। जिसको लेकर मैं और मेरी टीम अक्सर गांवों में जागरूकता शिविर लगाती रहती है। वह चाहे स्वच्छता से जुड़ी योजना हो, प्रधानमंत्री कौशल विकास से जुड़ी योजना हो या अन्य ऐसी योजनाएं जो ग्रामीण क्षेत्रों के लिए हों। क्योंकि बिना जागरूकता ग्रामीण महिला सशक्तिकरण नहीं किया जा सकता है। पूरे विष्व में 15 अक्टूबर को को अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 2008 से हुई। इस दिन को मनाने का उद्द्येश्य कृषि विकास, ग्रामीण विकास, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण गरीबी उन्मूलन में ग्रामीण महिलाओं के महत्व को लेकर जागरूक करना है। भारत एक विकासशील देश है और एक आंकड़ें के मुताबिक यहां 43 प्रतिशत महिलाएँ कृषि श्रमिक के रूप में कार्य करती हैं और खाद्य क्षेत्र से जुड़ी हैं। इन तरह से यदि हम ग्रामीण महिलाओं की पहुँच उत्पादक कृषि संसाधनों तक सुनिश्चित की जाए, तो गरीबी जैसी समस्या का उन्मूलन करना आसन होगा। अभी हाल ही में ग्लोबल हंगर इंडेक्स की ओर से जारी एक रिपोर्ट में भुखमरी के मामले में भारत की स्थिति को गंभीर दिखाया गया है। दुनिया भर के विकासशील देशों में भुखमरी की समस्या पर इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में भारत 119 देशों में से 100वें पायदान पर है। भारत-बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों से भी पीछे है। साथ ही बाल कुपोषण को लेकर स्थिति और बिगड़ी है। भुखमरी का कारण गरीबी है और गरीबी को महिला सशक्तिकरण से दूर किया जा सकता है। ये मैंने ऊपर दिए गए आंकड़ों में बताया है।
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