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Tuesday, February 13, 2018

।। एतिहासिक धरोहर ।। अश्वत्थामा आज भी भोलेनाथ की करने आते है पूजा

बिठूर से मधुकर राव मोघ की रिपोर्ट
अक्रॉस टाइम्स हिंदी समाचार पत्र
बिठूर  । अमरत्व को प्राप्त आचार्य द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा कौरव युवराज दुर्योधन की मित्रता के कारण महाभारत के युद्ध के समय ऐसा जघन्य अपराध कर दिया। जिसका खामियाजा आज भी उन्हे कोढ़ी बन चुकाना पड़ा रहा है।उन्होने ब्रह्मास्त्र का वार
उत्तरा के गर्भस्थ शिशु पर कर दिया था। इससे पहले दुर्योधन ने पाण्डवों के साथ जो अन्याय किया वह जग जाहिर है।पूरे राज्य के एवज मे सुई की नोक के बराबर भूमि न देने की जिद पर अडा रहा और पुत्र मोह मे ध्रतराष्ट्र को अपने सौ पुत्रों को गंवा ना पड़ा। यह सन्देश दुनिया को दिया की ब्यक्ति को दम्भ वस कभी किसी पर अन्या नही करना चाहिये। कानपुर शहर से बत्तिस किलोमीटर उत्तर पश्चिम जी टी रोड किनारे बसे शिवराजपुर से कुछ हटकर खेरेश्वर मन्दिर इस शिव लिंग की स्थापना स्वयं द्रोणाचार्य ने की थी। जहाँ  आज भी अश्वत्थामा पूजन करने रात्रि के तीसरे प्रहर आते है। और जब शिवाला के द्वारा पुजारी पूजन के लिए मन्दिर के पट खोलते है तो भोलेनाथ पूजित मिलते है। पुजारी वीरेन्द्र गोस्वामी की सुने तो अश्वत्थामा को देखा तो किसीने भी नही बस छाया मात्र दीखती है। इस क्रम को बीते पाँच  हजार साल गुजर चुके है।सफेद कमल पुष्प आच्छादित तालाब के बारे मे वे बताते है कि गन्धर्व ताल कहलाता है। पिताजी बताते थे कि रग बदल कमल बेल डाली गयी पर कालान्तर में सफेद फूल मे बदल गयी। सरकार की तरफ से किसी प्रकार का योगदान मन्दिर को नही है। वीरेन्द्र बताते है कि शहर के कुछ साहुकार भक्त योगदान करदिया करते है महाशिवरात्रि को मेला लगा करता है बाकी सोमवार को भक्त लोग आ जाया करते है।

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