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Wednesday, March 22, 2017

दो दिवसीय बसंतकालीन गन्ने के साथ अंतःफसली खेती पर कार्यषाला का आयोजन

दो दिवसीय बसंतकालीन गन्ने के साथ अंतःफसली खेती पर कार्यषाला का आयोजन



     

शाहजहाँपुर।।राश्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजनान्तर्गत ‘‘बसंतकालीन गन्ने के साथ अंतःफसली खेती’’ पर दो दिवसीय कार्यषाला का आयोजन उ0 प्र0 गन्ना किसान संस्थान प्रशिक्षण केन्द्र, शाहजहॉंपुर पर 21 मार्च से 22 मार्च  तक किया गया। कार्यशाला के आयोजन का मुख्य उद्देश्य बसंतकालीन गन्ने के साथ दलहन एवं तिलहन फसलों का क्षेत्रफल बढ़ाना एवं गन्ने के साथ दलहन एवं तिलहन फसलों की खेती करके एक साथ दोहरा लाभ लेकर गन्ना कृषकों को आर्थिक समृद्ध करना हैं। 21मार्च में कार्यशाला का उद्घाटन डा0 राकेश कुमार, उप सम्भागीय प्रसार अधिकारी, सदर ने दीप प्रज्वलित कर किया और अपने सम्बोधन में कहा कि आज के दौर में गन्ने के साथ दलहन एवं तिलहन फसलों का उत्पादन लेकर गन्ना खेती से अधिक आय अर्जित करना हैं। डा0 कुमार ने कहा कि प्रति ईकाई गन्ना उत्पादन, चीनी परता तथा दलहन एवं तिलहन की बढ़ती समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए वैज्ञानिकों को इस प्रकार योजनाध्शोध करना चाहिए जिससे दलहन एवं तिलहन का उत्पादन करके समस्या का समाधान हो सके और किसानों को अधिक आय मिल सके। डा0 कुमार ने अवगत कराया कि कृषि विभाग द्वारा मूंग, उड़द का बीज अनुदान पर दिया जा रहा हैं और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजनान्तर्गत चलाये जा रहे कार्यक्रमों की जानकारी दी। श्री पी0 के0 कपिल ने कार्यशाला के समापन अवसर पर संशोधित टैªन्च विधि से बसंतकालीन गन्ना के साथ दलहन एवं तिलहन फसलो के उत्पादन की वैज्ञानिक तकनीकी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस विधि से गन्ना बुवाई करने पर परम्परागत विधि की अपेक्षा दलहन एवं तिलहन फसलों के उत्पादन के साथ साथ गन्ना उपज एवं चीनी परता में अभिवृद्धि होती हैं। पानी की लगभग 60 प्रतिशत बचत हो जाती हैं। बसंतकालीन गन्ने के साथ दो नाली के बीच खाली जगह में अंतःफसल के रूप में उर्द, मूंग, राजमा, प्याज, सूरजमुखी आदि फसलों की सहफसली खेती करके अधिक लाभ लिया जा सकता हैं और मृदा की उर्वरा शक्ति भी बनी रहती हैं। इस विधि से 500-600 कुन्तल प्रति एकड़ गन्ने का उत्पादन लिया जा सकता हैं। इस कार्यशाला का उद्देश्य तभी सफल होगा जब सभी किसान अपने अपने खेतों में जाकर बसंतकालीन गन्ने के साथ दलहन एवं तिलहन फसलों की सहफसली खेती करेंगे। डा0 अनेंग सिंह, वरि0वैज्ञानिक अधिकारी ने गन्ना फसल के साथ दलहन एवं तिलहन फसलों के उत्पादन हेतु खाद एवं उर्वरकों के संतुलित प्रयोग पर प्रकाश डालते हुये कहा कि अंतः फसल को अलग से खाद एवं उर्वरक देने की आवश्यकता हैं। डा0एन0पी0गुप्ता, वरिष्ठ वैज्ञानिक, के0वी0के0, शाहजहाँपुर ने जैविक विधि द्वारा गन्ना उत्पादन तकनीकी, डा0 अरविन्द कुमार, वैज्ञानिक अधिकारी ने गन्ने के साथ अंतः फसली खेती हेतु गन्ने की स्वीकृत प्रजातियों पर प्रकाश डाला, डा0 एस0 पी0 यादव, वैज्ञानिक अधिकारी ने बसंतकालीन गन्ने के साथ दलहन एवं तिलहन फसलों के उत्पादन की वैज्ञानिक तकनीकी, डा0एस0पी0सिंह, वरि0वैज्ञानिक, ने गन्ना एवं दलहन फसलों मे लगने वाले प्रमुख रोगों की पहचान एवं रोकथाम के उपायों पर भी प्रकाश डाला। कार्यशाला को डा0 बी0 आर0 एस0 चौहान, वरि0वैज्ञानिक, डा0 मदन लाल, वैज्ञानिक अधिकारी, डा0 एस0 पी0 सिंह, वैज्ञानिक अधिकारी, डा0 सोनिया यादव, वैज्ञानिक अधिकारी, डा0 वी0सी0जादौन, प्रक्षेत्र अधीक्षक आदि ने भी सम्बोधित किया। कार्यशाला में जनपद-रामपुर, बरेली, लखीमपुर, सीतापुर एवं शाहजहाँपुर के 50 प्रगतिशील गन्ना कृषकों के साथ साथ विभागीयध्चीनी मिल के अधिकारी व कर्मचारियों ने भी भाग लिया। गन्ना कृषकों को गन्ना साहित्य एवं प्रमाण पत्र वितरित कर कार्यशाला का समापन किया गया।


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