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Tuesday, January 2, 2018

किताब की जगह हाथों में भीख ,डीआईओएस कार्यालय में भीख मांग रहे बच्चे

शासन का सर्व शिक्षा अभियान को पलीता लगा रहे शिक्षा विभाग के अधिकारी

आगरा। देखा जाए तो सरकारें सर्व शिक्षा अभियान के दावे करती हैं लेकिन जब हकीकत सामने आती है तो दावों की पोल खुलती ही नजर आती है वही मोदी व योगी की सरकार  भले ही बच्चों के विकास का दावा पेश कर रही हो मगर हकीकत तो यह है कि आज भी बचपन  सिसक रहा है कई होटलों में तो कहीं ईट के भट्ठों पर तो कहीं कूड़े के ढेर पर पेट की भूख मिटाने के लिए मासूम बच्चे जोखिम भरा कार्य करने को मजबूर हैं देश के लाखों बच्चे भोजन स्वास्थ्य शिक्षा जैसे अपने मौलिक अधिकारों से वंचित हो रहे हैं देशभर में अभी भी लगभग करोड़ों बच्चे सड़कों पर गुजारा करते हैं तो   लाखों के आसपास बतौर बंधुआ मजदूर कार्य कर रहे हैं लेकिन सवाल वहां होता है जब सुबे की सरकार इन बच्चों के सुधार के लिए करोड़ों रुपए जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालयों के  महंतो को देती है लेकिन डीआईओएस  खुद ही जिम्मेदारी को दरकिनार करते हुए ऑफिस में आना भी मुनासिब भी नहीं समझ रहे हैं तो कर्मचारियों का ऑफिस में आना कहां तक लाजमी है शासन के सर्व शिक्षा अभियान को  पलीता लगा रहे हैं अफसर जिसकी पड़ताल जब संवाददाता ने की तो जिला शिक्षा निरीक्षक कार्यालय शाहगंज में जिला विद्यालय निरीक्षक  भी 11:30 बजे तक ऑफिस में दिखाई भी नहीं दिए कुर्सियां यूं ही अफसर का इंतजार करती रही फरियादी,फरियाद लेकर भटकने को मजबूर रहे लेकिन ना तो ऑफिस में जिम्मेदार कर्मचारी से लोगों को संतुष्ट जवाब मिला और न ही अधिकारी इससे साफ जाहिर होता है की योगी सरकार का सर्व शिक्षा अभियान ऐसे जिम्मेदार  अफसर के कारण कागजों में ही सिमटता दिख रहा है। हां एक नजारा डीआईओएस ऑफिस का और देखने को मिला जिस नजारा को संवाददाता ने अपने सहयोगी के साथ तस्वीरें कैमरे में कैद जरूर कर ली जो शिक्षा विभाग की बखूबी  पोल खोल रही थी वहीं कुछ बच्चे भीख मांगते ऐसे दिखें ,कुछ बच्चों पर तो ठंड मैं तन ढकने को अंडरवियर के सिवा कपड़े भी नहीं थे जिस का नजारा जिला निरीक्षक कार्यालय में बाहर से आए हुए स्कूल प्रबंधकों को सर्व शिक्षा के जिम्मेदारों के आगे मुंह चिढ़ाते हुए दिखाई दे रहे थे उनसे ऐसा  लग रहा था कि  जिन हाथों में किताब, कॉपी और पेंसिल होना थी, उनमें आज कटोरा है। यह धुंधली तस्वीर देश के उस 'भविष्य की है, जो खुद अंधकार में जी रहे हैं। सरकार की तमाम योजनाएं भी ऐसे बच्चों को मुख्यधारा से जोडऩे में नाकाम ही साबित हो रही हैं।वही शहर के एनजीओ जन प्रहरी के प्रबंधक सचिव नरोत्तम सिंह शर्मा का कहना है कि डीआईओएस की कार्यप्रणाली की व्यवस्था राम भरोसे चल रही है यहां विद्यालय निरीक्षकों के नाम पर मात्र खानापूर्ति ही होती है चढ़ावे के आधार पर  सभी निरीक्षण का कार्य  पूरा  किया जाने में  भी  इनकार नहीं किया जा सकता  जिसकी शिकायतें यहां के जिला अधिकारी से करने के उपरांत भी नतीजा ढाक के तीन पात ही रहता है जबकि आये दिन बच्चों को  यूं ही  कार्यालय  में बाहरी क्षेत्र से आए  विद्यालय निरीक्षकों के सामने हाथ  फैलाते हुए देखा जा सकता है अब इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिम्मेदार अफसरों की लापरवाही के कारण ही आज बच्चे सड़कों पर भीख मांग कर आपबीती सुनाने को मजबूर हैं जिनकी सिसकियों को ना अफसर सुनते और न ही उत्तर प्रदेश की योगी सरकार  सिसकते हुए अपनी आप बीती देश का चौथा स्तंभ मीडिया को आपबीती बताई कहां कि मैं कभी स्कूल नहीं गया। स्कूल जाते बच्चों को देख मन तो करता है लेकिन गरीबी अब भी स्कूल नहीं जाने देती। रोज सुबह-शाम मंदिर के बाहर भीख मांगकर दो वक्त की रोटी का इंतजाम करता  हूं ये सिर्फ उन बच्चों की आपबीती नहीं है, शहर में ऐसे सैकड़ों मासूम हैं जो अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी कमाने के लिए भीख मांगते हैं। जिन हाथों में किताब, कॉपी और पेंसिल होनी थी, उनमें आज कटोरा है। यह धुंधली तस्वीर देश के उस 'भविष्य की है, जो खुद अंधकार में जी रहे हैं। सरकार की तमाम योजनाएं भी ऐसे बच्चों को मुख्यधारा से जोडऩे में नाकाम ही साबित हो रही हैं। ऐसे तमाम मासूम है जिनका बचपन मजबूरी के हाथों गरीबी में पड़ा हुआ है इनका ना तो शासन द्वारा चलाई जा रही जन कल्याणकारी योजनाओं से कोई मतलब है और ना ही विकास के दावों से कोई सरोकार है इनकी बदहाली सभ्य समाज के वंचित समाज सेवकों के मुंह पर तमाचा भी है जो समाज सेवा का दम भरते हैं।

सोनू सिंह जिला संवाददाता आगरा
अक्रॉस टाइम्स हिंदी समाचार पत्र

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