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Tuesday, January 16, 2018

प्रधानों व पंचायत अधिकारियों के लिए बवाले जान बने हुए है शौचालय

जावेद आरिफ ब्यूरो चीफ रायबरेली
अक्रॉस टाइम्स हिंदी समाचार पत्र
बछरावां रायबरेली । मौजूदा केन्द्र सरकार की शौचालय योजना तथा आवास योजना ग्राम प्रधानों व पंचायत अधिकारियों के लिए बवाले जान साबित हो रही है। सरकार द्वारा पहले ही इन योजनाओं से प्रधानों व पंचायत अधिकारियों को पूर्ण रूपेण बाहर कर दिया गया था। और निर्माण में आने वाली लागत सीधे लाभार्थी के खाते में दी जाने लगी। परन्तु हालत यह हुई कि न तो कहीं शौचालय पूरे हो पाये और न ही आवास ही सही सलामत बन पाये। मौरंग की मंहगाई के चलते ईंटों की जुड़ाई डस्ट से करायी गयी जो नियम विपरीत थी। अपेक्षित सफलता न पाने के बाद पुनः इसमे ंप्रधानों तथा पंचायत अधिकारियों को शामिल किया गया। हालत यह हो गयी थी कि लोग शौचालय बनवानें के लिए तैयार ही नहीं हो रहे थे। उदरहरा निवासी महादेव नें अपने दरवाजे शौचालय बनवानें से इन्कार दिया। इसी गांव की एक महिला के अधूरे शौचालय के बारे में जब ग्राम पंचायत अधिकारी नें पूछताछ की तो  उसनें बताया कि  प्राप्त धनराशि सें उसने 4000 की खाद खेतों में ड़ाल लिया है। फसल कटनें के बाद शौचालय पूरा कराया जायेगा। इसी तरह बहादुर नगर के एक दलित लाभार्थी नें बताया कि प्राप्त 12000 में से उसने 2000 के महुवे खरीद लिये थे। जिनसे वह शराब बनाकर 4000 बनाना चाहता था। परन्तु दुर्भाग्य से पुलिस नें छापा मार दिया। और बचनें के लिए उसके 3000 रूपये और खर्च हो गये। यह कहानी किसी एक जगह की नहीं लगभग प्रत्येक ग्राम सभा की है। शौचालय निर्माण में लगे एक कारीगर नें बताया कि लाभार्थी दरवाजा खड़ें करनें के लिए हाथ भी नहीं लगवाते है। और तो और निर्मित होने के बाद अगर दीवारों की तराई की जिम्मेंदारी उन्हें दी जाती है तो वह उसे भी करनें से इन्कार कर देते है। एक पंचायत अधिकारी नें कहा कि बेहतर होता कि अगर सरकार टेण्ड़र के जरिये किसी ठेकेदार को कार्य देकर लाभर्थियों के शौचालय बनवा देती तो उसे बेहतर सफलता मिल सकती थी।

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