कौन सा अधिनियम पास हो गया कि एक से दस तक के सिक्के नही लिए जाते बैंक और बाजार मे- बताये आरबीआई
मोहम्मदी-खीरी। अफवाहो के चलते एक रूपये का नया छोटा सिक्का अभी तक व्यापारी और दुकानदार नहीं ले रहे थे अब फकीरो ने भी लेने से मना करना शुरू कर दिया। यही हाल दस रूपये के सिक्के का है जिसे बैंक नहीं ले रही। जबकि भुगतान देते समय बैंक के द्वारा जबरन दस रूपयो के सिक्को की थैली दी जा रही है। नोट बन्दी के दौरान लाखो रूपयो के सिक्के बैंक ने ग्राहको को दिये जो लौट-घूमकर दुकानदारो के पास पहुच कर बोरो में भरा पड़ा है। बोरो में लाखो रूपया ठप्प हो पड़े रहने से व्यापारी खासे परेशान है।सरकार की नीतियो का खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। अभी तक एक रूपये का नया छोटा सिक्का दुकानदारो ने लेना बन्द कर दिया था। अब उसे फकीरो ने भी लेने से मना कर दिया। अफवाहो का बाजार गर्म है कि सिक्का नकली है। इससे पूर्व दस रूपयो वाला सिक्का जो वर्ष 2006 व 2009 तक जारी हुआ उस पर शब्द रूपया नहीं लिखा है को न व्यापारी दुकानदार ले रहे और न आम जनता ही ले रही है। इसी प्रकार 2012 व 2015 में जारी एक रूपये वाले छोटे सिक्को को भी नकली कह कर हर कोई नकार रहा है जबकि दस रूपयो की भाति एक रूपयो उन्हे सिक्का भी लाखो की संख्या में बाजार में फैला पड़ा है। जिन लोगो के पास एक रूपयो का यह सिक्का है वह इसे कहा खर्च करे समझ नही पा रहे है।एक रूपये से अधिक र्दुगति दस रूपये के सिक्के की है। बाजार में दस रूपये का सिक्का दो प्रकार का है एक वर्ष 2011 से 2013 के वर्षो में जारी सिक्के असली और वर्ष 2012 व 2015 में जारी सिक्के नकली की अफवाह इतनी मजबूती के साथ फैली है कि व्यापार मण्डल के एलाउन्स कराने के बाद भी लोग उसे नहीं ले रहे है। जबकि दस रूपयो का सिक्का मार्केट में इतना अधिक आ गया है कि दुकानदारो के पास बोरियो में भरा पड़ा है। नोटबन्दी के दौरान बैंक ने पचासो लाखो रूपयो के सिक्के अपने ग्राहको को जबरन दिये। सिक्के न लेने पर ग्राहको को भुगतान नहीं दिया हर ग्राहक जिसने पांच हजार का भुगतान लिया था उसे एक हजार का सिक्का दिया गया। बैंक ने दिल खोलकर ग्राहको को सिक्के दिये लेकिन बैंक वापस सिक्के ले नहीं रही। दुकानदार, व्यापारी एवं आम ग्राहक अगर दो-चार हजार रूपये के सिक्के लेकर बैंकमें जमा करने ले जाता है तो बैंक कर्मी विशेष रूप से स्टेट बैंक में स्टाफ बोलते है कि " सिक्के नहीं लिये जाते’’ कह कर साफ मना कर देते है। मोदी के नोट बन्दी के बाद से ये सारे हालात पैदा हुए जो खत्म होने का नाम नहीं ले रहे। व्यापारियो के पास बोरो के हिसाब से सिक्का भरा पड़ा है जिससे उन्ह आर्थिक स्थिति से गुज़रना पड़ रहा है।
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