*जाने कहाँ गए वो दिन*
*मन से मिटा मनोरंजन का शौक*
*विलुप्त हुए कई मनोरंजनो के ख़ास साधन*
*सर्कसों से सिनेमा हाल तक समाप्ति की ओर*
---------------------
फ़िरोज़ाबाद:-कहते है वक्त बड़ा वलवान होता है समय के साथ साथ सब कुछ बदलता जा रहा है?वक्त के बदलते परिवेश में हम और आपको निरंतर बदलाव पर बदलाव दिखाई भी दे रहे है इसी कड़ी का अहम मुद्दा हमारे जहन में आया वो है मनोरंजन जिसे दिलो दिमाग को शान्ति प्रदान करने में काफी सहायक माना जाता रहा है?एक वक्त था जब गली मुहल्लों में मदारी या सपेरा का खेल देखने के लिए लोगो के जमाबड़े खूब देखे जाते थे?वही उन्ही में शामिल जादूगरों के जादू का खेल भी दर्शको को खूब लुभाता था लोग हर वर्ष बड़े सर्कसों के शहर में लगने का उत्सुकता से इंतज़ार करते थे?आज वक्त ने ऐसी करवट ली कि लोगो के ज़हन से मनोरंजन के उपरोक्त साधन कोसों दूर है वज़ह क्या है लोगो के पास समय का अभाव या महंगाई दोनों ही पहलु एक दूसरे से मिलते जुलते है तो वही दूसरी ओर माना जाए कि लोगो की सोच मनोरंजनो के तमाम उन साधनो से दूर जा चुकी है जो वाकई हमारे मन को शान्ति प्रदान करने के साथ साथ ख़ुशी भी प्रदान करने का कार्य करते थे?इसी कड़ी में हम लेते है सिनेमाघरों को तो वो भी नाम मात्र को ही अलग अलग जिलो एवम् कस्बो में देखने को मिलते है और जो है भी तो भीड़ वहां से कोसो दूर है बात करें आज से महज 17/18 वर्ष पूर्व की तो सिनेमाघरों की भीड देखते बनती थी फिल्मो के शो हाउस फुल होने के साथ ही टिकटों की ब्लैक खूब देखने को मिलती थी आज हम बात करे जनपद फ़िरोज़ाबाद की तो ज्यादातर सिनेमाघरों का पतन हो चुका है जो 2/4 है भी तो भीड़ गायब है सर्कस जेसे अन्य प्रोग्राम भी जो हर वर्ष देखने को मिलते थे आज वे भी ना जाने कहाँ है यहां माने तो जगह की कमी और लोगो की सोच दोनों ही इस बात की गवाह है कि सिनेमा हाल या सर्कस मालिको ने भी अपना मन बदल लिया है?सर्कस में काम करने वाले मु.हनीफ कहते है आज से 20 वर्ष पूर्व हमे अपनी कला का प्रदर्शन करने में सर्कस के टेंट में बहुत मज़ा आता था अब एक तो भीड़ गायब और दुसरा सर्कस मालिको ने भी अपने मन बदल लिए है?हमने 3 सर्कस में काम किया आज तीनो बंद हो चुके है अब तो बस यादें ही बाकी है बाकी मनोरंजन लोगो की सोच से पलायन कर चुका है मजबूरन हमे भी सोच बदलनी पड़ी!
वही सत्कार सिनेमा हाल में पूर्व में कार्यरत कर्मी पिंटू कहते है अब लोगो की रूचि बिलकुल भी सिनेमाहालो में नही है हम टिकेट बांटते थे तो भीड़ देखते बनती थी अब ऐसा नही है मेने भी 5 वर्ष पूर्व ही काम छोड़ दिया अब पहले जेसी बात बिलकुल नही है?बात करें मेलो में लगने वाले मनोरंजन के साधनो में जेसे नोटंकी,जादूगर भी देखने को नही मिलते वजह कई है किसी एक वजह को जिम्मेदार नही ठहराया जा सकता! कश्मीर सिंह
ब्यूरो चीफ़ फ़िरोज़ाबाद
अक्रॉस टाइम्स हिंदी समाचार पत्र
फोन, 9917086925
No comments:
Post a Comment