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Friday, February 17, 2017

बालभविष्य अस्त ,सदन में चर्चा क्यों नहीं

*****बालभविष्य अस्त ,सदन में चर्चा क्यों नहीं******
गरीबो के बच्चो को खाने के लिऐ रोटी नहीं है, पहन्ने के लिऐ तन पर कपडा नहीं है ,रात होते ही यह सोच कर सो जाते है कि स्वर्ग से कोई परी उतर कर धरती पर आयेगी जो भूखे पेट रोटी दे जायेगी । परन्तु यह कहाँ सम्भव है जबधरती के फरिश्ते जनता द्वारा चुनकर लोकसभा व विधान सभा में भेजे जाते है कि तमाम जन सम्सयाओ को लेकर चर्चा करे और उसका निराकरण करे परन्तु ऐसा नही होता वो तो बनने के बाद राजधानी में ही नजर आते है, सदन में भी को चर्चा नहीं, कुर्सी के लालच में देश भविष्य गडडे में जा रहा है ,सर्यअस्त होता जा रहा है तमाम बेरोजगार दर दर भटक रहे है परन्तु उनसे दैनीय हालात उन मासूमों की है जिनका बचपन उनसे रुठ गया हो , पढ़ाई उनसे दूर भाग गयी हो , उनकी सारी इच्छाओं का दमन हो गया हो लगभग देश के 1 करोड बच्चे इनसे अछूते है वो तो कहीं कल कारखानों में, कहीं होटलों में तो कहीं ऊंची चार दीवारियों में बंद कोठियों की साफ सफाई में लगे मिलते है, बाल श्रम पर बने हुये सारे कानून किताबो में सड रहे है जिन हाथों में इन बच्चो का भविष्य है वही उनके भविष्य के साथ खिलवाड कर रहे है और सारे कानून तोडते दिखाई देते है, इससे भी गंभीर तत्व ये है कि देश के 1 करोड बच्चे बाल मजदूरी का शिकार है शिक्षा सें और शारीरिक एमांनसिक विकास से वंचित हैं भारतीय संविधान में जो इनका हक है उससे महरूम हैं वह समाज के एक ऐसे ढांचे में पलने को मजबूर हैं जिनके छोटे कंधो पर शसक्त भारत निमार्ण हो सकता है परन्तु वो सही से जीवन को निर्माण दिशा देने में अक्षम है, सत्ताधारी , भ्रष्ट आला अफसरो के कारण बाल मन्त्रालय से मिलने वाली योजनाओ को कागजी कार्यवाही में ही रखकर खा लिया जाता है जिनका भविष्य या तो अपराधिक मोड ले लेता है या फिर फुटपात जीवन पर टिका है जिनकी बेनाम जिदंगी का कोई मोल नजर नहीं आता। आखिर क्यों !! क्यो करते है मजदूर एकहा सोते है सत्ताधारी जनप्रतिनिधि एक्यो नहीं चर्चा सदन में आखिर क्यों !!!
लेखक. ज्ञान प्रकाश सक्सेना 

सम्पादक 
अक्राॅस टाइम्स हिन्दी समाचार पत्र

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