शिव महापुराण कथा में महाराज जी ने शिव पार्वती के विवाह की कथा सुनाई
गौरव शुक्ला ब्यूरो चीफ शाहजहाँपुर
अक्राॅस टाइम्स हिन्दी समाचार पत्र
शाहजहाॅपुर।। आदर्श विकलांग कल्याण संस्थान द्वारा विगत वर्षो की भाॅति पाॅचवी श्री शिव महापुराण कथा का आयोजन रामलीला मैदान खिरनी वाग शाहजहाॅपुर में सम्पन्न कराया कथा से पूर्व शाहजहाॅपुर के जिलाधिकारी इन्द्र विक्रम सिंह एवं पुलिस अधीक्षक डाॅ0 एस0 चनप्पा ने व्यास पीठ का पूजन बनारस के आचार्य विवेकानन्द जी कराया तदुपरान्त कथा का शुभारम्भ हुआ। इस अवसर पर जनपद के दोनो सम्मानित अधिकारियों ने आयोजन की भव्यता को देखकर समिति का आभार प्रकट किया। समिति ने भगवान की मूर्ति देकर दोनो सम्मानित अधिकारियों को सम्मानित महाराज के हाथों से कराया। कथा प्रागण में व्यास पीठ पर उपस्थित परम पूज्य संत श्री प्रशान्त प्रभु जी महाराज के श्री मुख से भक्तों ने कथा का श्रवण किया। महाराज जी ने कथा में प्रसंग सुनाते हुए कहा कि भगवान शिव और पार्वती के विवाह का वर्णन एवं विदाई के सम्बन्ध में बताया। महाराज जी ने कहा कि उधर शंकरजी ने सप्तर्षियों को विवाह का प्रस्ताव लेकर हिमालय के पास भेजा और इस प्रकार विवाह की शुभ तिथि निश्चित हुई। सप्तर्षियों द्वारा विवाह की तिथि निश्चित कर दिए जाने के बाद भगवान शंकरजी ने नारदजी द्वारा सारे देवताओं को विवाह में सम्मिलित होने के लिए आदरपूर्वक निमंत्रित किया और अपने गणों को बारात की तैयारी करने का आदेश दिया। उनके इस आदेश से अत्यंत प्रसन्न होकर गणेश्वर शंखकर्ण, केकराक्ष, विकृत, विशाख, विकृतानन, दुन्दुभ, कपाल, कुंडक, काकपादोदर, मधुपिंग, प्रमथ, वीरभद्र आदि गणों के अध्यक्ष अपने-अपने गणों को साथ लेकर चल पड़े।नंदी, क्षेत्रपाल, भैरव आदि गणराज भी कोटि-कोटि गणों के साथ निकल पड़े। ये सभी तीन नेत्रों वाले थे। सबके मस्तक पर चंद्रमा और गले में नीले चिन्ह थे। सभी ने रुद्राक्ष के आभूषण पहन रखे थे। सभी के शरीर पर उत्तम भस्म पुती हुई थी। इन गणों के साथ शंकरजी के भूतों, प्रेतों, पिशाचों की सेना भी आकर सम्मिलित हो गई। इनमें डाकनी, शाकिनी, यातुधान, वेताल, ब्रह्मराक्षस आदि भी शामिल थे। इन सभी के रूप-रंग, आकार-प्रकार, चेष्टाएँ, वेश-भूषा, हाव-भाव आदि सभी कुछ अत्यंत विचित्र थे। किसी के मुख ही नहीं था और किसी के बहुत से मुख थे। कोई बिना हाथ-पैर के ही था तो कोई बहुत से हाथ-पैरों वाला था। किसी के बहुत सी आँखें थीं और किसी के पास एक भी आँख नहीं थी। किसी का मुख गधे की तरह, किसी का सियार की तरह, किसी का कुत्ते की तरह था।उन सबने अपने अंगों में ताजा खून लगा रखा था। कोई अत्यंत पवित्र और कोई अत्यंत वीभत्स तथा अपवित्र गणवेश धारण किए हुए था। उनके आभूषण बड़े ही डरावने थे उन्होंने हाथ में नर-कपाल ले रखा था। वे सबके सब अपनी तरंग में मस्त होकर नाचते-गाते और मौज उड़ाते हुए महादेव शंकरजी के चारों ओर एकत्रित हो गए। देवराज इंद्र भी कई आभूषण पहन अपने ऐरावत गज पर बैठ वहाँ पहुँचे थे। सभी प्रमुख ऋषि भी वहाँ आ गए थे। तुम्बुरु, नारद, हाहा और हूहू आदि श्रेष्ठ गंधर्व तथा किन्नर भी शिवजी की बारात की शोभा बढ़ाने के लिए वहाँ पहुँच गए थे। इनके साथ ही सभी जगन्माताएँ, देवकन्याएँ, देवियाँ तथा पवित्र देवांगनाएँ भी वहाँ आ गई थीं। इन सभी के वहाँ मिलने के बाद भगवान शंकरजी अपने स्फुटिक जैसे उज्ज्वल, सुंदर वृषभ पर सवार हुए। दूल्हे के वेश में शिवजी की शोभा निराली ही छटक रही थी। इस दिव्य और विचित्र बारात के प्रस्थान के समय डमरुओं की डम-डम, शंखों के गंभीर नाद, ऋषियों-महर्षियों के मंत्रोच्चार, यक्षों, किन्नरों, गन्धर्वों के सरस गायन और देवांगनाओं के मनमोहक नृत्य और मंगल गीतों की गूँज से तीनों लोक परिव्याप्त हो उठे। उधर हिमालय ने विवाह के लिए बड़ी धूम-धाम से तैयारियाँ कीं और शुभ लग्न में शिवजी की बारात हिमालय के द्वार पर आने लगी। पहले तो शिवजी का विकट रूप तथा उनकी भूत-प्रेतों की सेना को देखकर मैना बहुत डर गईं और उन्हें अपनी कन्या का पाणिग्रहण कराने में आनाकानी करने लगीं। पीछे से जब उन्होंने शंकरजी का करोड़ों कामदेवों को लजाने वाला सोलह वर्ष की अवस्था का परम लावण्यमय रूप देखा तो वे देह-गेह की सुधि भूल गईं और शंकर पर अपनी कन्या के साथ ही साथ अपनी आत्मा को भी न्योछावर कर दिया। हर-गौरी का विवाह आनंदपूर्वक संपन्न हुआ। हिमाचल ने कन्यादान दिया। विष्णु भगवान तथा अन्यान्य देव और देव-रमणियों ने नाना प्रकार के उपहार भेंट किए। ब्रह्माजी ने वेदोक्त रीति से विवाह करवाया। सब लोग अमित उछाह से भरे अपने-अपने स्थानों को लौट गए। तथा हिमालय राज एवं देवी मैना ने बडी ही खुशी उत्साह के साथ अपनी पुत्री पार्वती की विदाई की। भगवान शंकर एवं माता पार्वती का विवाह एवं विदाई समिति ने बडी धूम धाम से की। इस अवसर पर आयोजन समिति के मुख्य सरंक्षक हरीशरण बाजपेई अशोक कुमार गुप्ता उद्योगपति मुनेश्वर सिंह प्रधान सतीश चन्द्र वर्मा विश्व मोहन बाजपेई नन्द्र कुमार दीक्षित नेहा मिश्रा हिमाशू कश्यप दीप श्रीवास्तव राहुल मिश्रा संयोजक नीरज बाजपेई आदि का सहयोग रहा।