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Saturday, January 29, 2022

बदलते वक्त की धार ने मुझे इस काबिल बना दिया।
कलम की तलवार ने मुझे लोगों का दुश्मन बना दिया।।
शतरंज के खेल में ऊंट और वजीर किस करवट बैठेगा।
मेरी मोहब्बत की तलबगार ने मुझे बेवफा बना दिया।।

ज्ञान प्रकाश

जाति वाद के वाद विवाद,
आरक्षण की राजनीति,
खादी लिबास पहन जनप्रतिनिधि छलते है जनता को
नही दिखता, उनको बिजली, पानी, रोजगार, सड़क निर्माण,
राज्यकोष रहे खाली या भरा।
दुखी जनता रही करहा।।

कानून बनते है बिगड़ते है,
निर्भया जैसे काँण्ड होते है,
सत्ता की आड़ में नाबालिक और
आरक्षण वाले लाभ उठाते है,
आजादी के लिये गाँधी मर गये,
बटवारा भारत पाकिस्तान कर गय,
मूँग दलता पाक भारतीय सीमा पर
मोदी मुँह तोड़ जबाव दिलवाते है।
बिचारे अन्ना जनलोकपाल पारित कराने के वास्ते
एकजुट कराते है।।
केजरीवाल भी कम नही,
पाँलियुशन पर ओड इवन चलवाते ह।
बात करू तो किस किस की करू,
यहाँ तो खाकी वर्दी वाले बीस रूपये मेँ बिक जाते हैँ।
यहाँ तो खाकी वर्दी वाले बीस रूपये मेँ बिक जाते हैँ।

लेखक . ज्ञान प्रकाश

प्यार, इश्क,मोहब्बत
तो एहसास है।
तुम्हारे होने का,
अपना कहने का।।
महज
ओस की बूँद,
मेरे आसू भी,
एक रिस्ता है।
तेरे न होने का।।

ज्ञान प्रकाश 29-5-16

पथ पथिक प्रस्थान करो,
हताशा और निराशा क्यो।
त्रिशंकू से दो राहोँ बीच खड़े,
फुल और शूल फिर चिँता क्यो।

मंजिले कफायत वफा नहीं मिलती
मुसाफिर है तेरी गलिओं के.........
तलाशते है हम विरानो में
हुस्ने जलक नहीं मिलती ...........


बिछड़ जरूर गये पर प्यार न हुआ कम,
वक़्त की गर्दिश थी जो आँखें है मेरी नम,
किस पैमाने मे तोलू अनमोल मोहब्बत को,
रब बताओ कैसे दिखाँऊ महबूबे सनम को,
मोहब्बते फना, रूशबा खुद हुआ धर छोडा,
वेबफा पत्थर का बूत कहे मेरा दामन छोड़ा,

  

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