मधुकर राव मोघे ब्यूरो चीफ कानपुर
अक्राॅस टाइम्स हिन्दी समाचार पत्र
कानपुर। हमारा भारत देश दुनिया मे सदा से क्रषि प्रधान देश रहा है यहाँ गेहू दलहन तिलहन और तमाम खाद्यान सम्बन्धी वस्तुए निर्यात की जाती रही है कुछ वर्षो पूर्व ज्याद उत्पादन पाने की लालच मे यूरिया डीएफपी आदि का खेती मे किसानो ने प्रयोग तो कर लिया पर आज जमीन बंजर से भी बहत्तर होती जा रही थी। किन्तु गाजियाबाद मे स्थित क्रषि अनु संधान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने गाय के गोबर एवं मात्र से प्राप्त तत्व जिसे डी कम्पोजर नाम दिया है अपने आपमे क्रषि भूमि स्वास्थ्य के लिए वरदान साबित हो रहा है। यह जानकारी गाजियाबाद के क्रषि अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिक एवं निदेशक श्री जगत सिंह ने कुछ ऐसा बताया कि पब्लिक पावर ने देश के किसानो के संग्यान मे डालना जरूरी समझा पर अधिक उवर्कों एवंथ्ब्ब् कीटनाशकों का प्रभाव
जैवाँश व हरीखाद की कमी से भूमि के जैवांश कार्बन में आई गिरावट
उपरोक्त कारण से उत्पादन तथा पोषण गुणवत्ता दोनों हुई प्रभावित
वेस्ट डी कम्पोजर है सही समाधान
वेस्ट डी कम्पोजर
इसे किसान अपने स्तर पर कैसे तैयार करें
क्या हैं इसके फायदे
वेस्ट डी कम्पोजर का प्रयोग खेती में कैसे करें
प्रयोग विधी
बुवाई से पुर्व बीजोपचार
पौधजड़ोपचार
फसलों एवं बागवानी में छिड़काव
वेस्ट डीकम्पोजर से भूमि स्वास्थ्य में इजाफा
समस्याग्रस्त भूमियों के लिए वरदान
फसलों में कीट एवं ब्याधियों से बचाव
वेस्ट डीकम्पोजर के प्रयोग में सावधानियां
भारतीय कृषि व्यवस्था ने यूं तो वर्ष 2003 के बाद आत्मनिर्भरता की सीढ़ियाँ लांघकर स्थाई उत्पादन के रूप मे स्थिर हुई। जिसके पीछे हरितक्रांति के मूल स्तम्भों में अच्छे बीजए खादए उचित सिंचाईं व्यवस्था तथा कीटनाशकों के प्रयोग मुख्य कारण रहे हैं। लेकिन हम एक तरफ जहाँ उत्पादन में आत्मनिर्भर होना शुरू हुये वहीं दूसरी तरफ गुणवत्ता युक्त यपौषक तत्वों से परिपूर्णद्ध उत्पादन में कमी आई है ऐसा वर्ष 2016 विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार पोषक तत्वों में 20रू तक की कमी की पुष्टि हुईं है। जोकि वर्तमान तथा भविष्य के स्वास्थ्य के लिये एक बड़ी चुनौती के रूप मे उभरकर सामने आयी है। तथा अधिक कीटनाशकों तथा कुपोषित भोजन के कैन्शरए मधुमेहए हड्डी रोगए नपुंसकता जैसी भयंकर सम्स्याओं से जूझने तथा साथ ही साथ भूमि के अत्यधिक दोहन के कारण भूमि शख्तए भौतिक दशा खराबए जैवाँश कार्बन में कमी के फलस्वरूप मृदा सूक्ष्मजीवों व केंचुओं की संख्या में कमी के साथ साथ कई पोषक तत्वों में भारी कमी आयी है। इसके के लिए भूमी का स्वस्थ रहना नितांत आवश्यक है।
सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिये भूमी स्वास्थ्य ही है सही समाधान
स्वस्थ भूमि से ही तमाम खाद्यान्न यअनाजए दालए तेलए फल व शाकशब्जियां द्ध तथा पशुओं के लिये चारा दाना इत्यादि प्राप्त होते हैं। अतः भूमि स्वास्थ्य ही सभी का एक मात्र समाधान है। जिसके लिये फसल बुवाई से पुर्व अच्छी व पची हुई गोबर की खादध कम्पोस्ट व वर्मीकम्पोस्ट का प्रयोगए वर्ष में में एक बार मिश्रित हरी खाद उत्पादन, वैल्यू एडिड खादों का प्रयोग, दलहन व तिलहन फसलों को प्राथमिकताए विभिन्न ऊंचाई वाली मिश्रित फसलें लगाना, फसलचक्र पर उचित ध्यान देनाए खरपतवारों को मल्चध् पलवार के रूप में खेत में बिछानाए खेत के फसल अवशेषों तथा जैविक कचरे को खाद बनाकर प्रयोग आदि करने से मृदा स्वास्थ्य में तेजी लाई जा सकती है। उपरोक्त सभी तकनीक अपनाने के साथ साथ राष्ट्रीय जैविक खेती केन्द्र गाजियाबाद द्वारा इजाज किये वेस्ट डीकम्पोजर जिसे हर तरीके से खेती में प्रयोग किया जा सकता है की उपियोगिता का एक बार मात्र 20 रुपये के खर्च से अपने खेतीरू स्वास्थ्य को हमेशा हमेशा के लिये दुरुस्त रखा जा सकता है।
क्या है डी कम्पोजर
यह देसी गाय के गोबर से निकाले गये बहुउपयोगी सूक्ष्म जीवों का कल्चर है जिसे किसान सिर्फ एक बार मंगाकर हमेशा हमेशा अपने घर पर बड़ी आसानी से अपनी आवश्यकतानुसार 10 लीटर से लाखों लीटर तक तैयार किया जा सकता है। यह दही के जामुन बनतक जंतजमत की तरह से काम कर बीजोपचार, पौध,जड़ो,पचार, फसलों एवं बागानों में छिडकावए सिंचाई के साथ प्रयोग करते रहने से भूमि का सम्पूर्ण स्वास्थ्य समाधान किया जासकता है।
वेस्ट डीकम्पोजर तैयार करने का तरीका
सर्वप्रथम वेस्ट डीकम्पोजर की एक बाँटल मगाकरए एक प्लास्टिक के ड्रम में 200 लीटर साफ पानी भरकरए ड्रम में दो यएक प्रतिशत गुड़ का घोल द्ध किलो सादा गुड़ ठीक प्रकार से घोलने के बाद एक.दो लीटर पानी में इस वेस्ट डीकम्पोजर की बाँटल के कल्चर को अच्छी प्रकार से घोलने के बाद 200 लीटर वाले गुड़ के घोल वाले ड्रम में अच्छी तरह से डंडे की सहायता से चलायें।गरमियों में यह घोल 4 से 6 दिन में तैयार हो जाता है। तथा सरदियों में 9 से 12 दिन में तैयार हो जाता है।
तैयार घोल की पहचान
वेस्ट डीकम्पोजर घोल तैयार होने पर इसमें गुड़ की चासनी जैसी मीठी मीठी महक आने लगती है तथा इसका रंग भी हल्का पीलापन लिये सफेदए या थोड़ा गहरा या कई बार गहरा भूरा जोकि गुड़ के रंग की वजह से ऊपर नीचे हो सकता है। जल्दी तैयार करने के लिये ड्रम में हवा के बुलबुलों द्वारा अथवा टुल्लू पंप की मोटर ड्रमों में डालकर ध्छोटे मोटर पंप की मदद् से इस घोल के सरकुलेशन द्वारा जल्दी तैयार किया जा सकता है।एक ड्रम से कई गुना उत्पादन कैसे करेंः
जब आपके पास एक ड्रम वेस्ट डीकम्पोजर घोल तैयार हो जाये तब अपनी आवश्यकता के अनुसार 5 या 10 ड्रमों में एक प्रतिशत गुड़ध् 2 किलो गुड़ प्रति 200 लीटर ड्रम की दर से सभी ड्रमों में अच्छी तरह से घोलकर पहले बनाए गये वेस्ट डीकम्पोजर घोल का 5 से 10रू घोल को जामुन के रूप में हर ड्रम में डालकर डंडे आदि से अथवा मोटर चालित पंप की मदद से एयरेशन करते रहने से सभी ड्रमों में वेस्ट डीकम्पोजर का घोल तैयार होने लगेगा तथा घोल को बार बार तैयार करने के लिये हर ड्रम में 5 से 10ः घोल बचायें तथा प्रति ड्रम दो किलो गुड़ हर बार डालें। आप एणक से दस ड्रम तथा दस से सौ ड्म और यदिण्आवश्यक हो तो इसी प्रकार से लाखों से करोडों लीटर वेस्ट डीकम्पोजर आप लगातार तैयार कर सकते हैं।
प्रयोग विधीः
1. बीजोपचार
2. पौधजड़ोपचार
3. उपचार
4. फसल बढवार
5. कीट व बिमारियों से बचाव
6. लवणीय एवं क्षारीय भूमियों का शुधार
बीजोपचारः
वेस्ट डीकम्पोजर का ताजा एंव तैयार घोल में बराबर मात्रा में पानी मिलाकर बहुत ही हल्के एंव छोटे बीजों फ्वारे द्वारा छिड़काव कर बीज को उलट पलट कर बीजोपचार करने के बाद हल्का.फुल्का छाया में सुखाकर तुरंत बुबाई करें। मध्यम व बड़े आकर के बीजों को भी फ्वारे छिड़काव विधी द्वारा 5 से 15 मिनट तक उपचारित कर बुवाई करें। धान के पानी में भीगे बीजों पर 25 से 30 मिनट तक उपचार के बाद बुवाई करें।बीजोपचार के दौरान मूंगफली व सोयाबीन जिनका छिलका उतरने का डर रहता है के बीजों का सावधानी पुर्वक उपचार कर शीघ्र ही बुवाई करें।
पौधजड़ोपचारः
ऐसी फसलें जिनकी नर्शरी तैयार कर पौध तैयार की जाती है बीजोपचार के साथ साथ बीच में सिंचाई के साथ भी वेस्ट डीकम्पोजर प्रयोग करते हुए पौध रोपाई के दौरान पौध को पौधशाला से निकालने के बाद वेस्ट डीकम्पोजर के ताजे एवं तैयार धोल में आधा पानी मिलाकर पौध के जड़ भाग को 15.30 मिनट तथा धान आदि की पौध को एक घंटे तक भी उपचारित करने के बाद मुख्य खेत में रोपाई करें। कंदए कटिंगशए व अन्य बुवाई युक्त मैटीरियल जैसे आलूएअरबीए शकरकंदए अदरखए गन्नाए गुलाबए गुल्दाब्दी व अन्य फसलों को भी आधा पानी व आधे घोल के साथ 15.20 मिनट तक उपचारित कर बुवाई कर सकते हैं।
भूमि उपचारः
आज देश कीकृषि योग्य भूमी की दशा अति दैनिय हैए भूमि अत्यधिक कठोरए व जैवाँश कार्बन की की अत्यंत कमी के कारण उतपादन देने मे शक्ष्म नहीं है तथा फसलें कीट व बिमारियों की चपेट में आने के कारण उत्पादन देने मे सक्षम नहीं हो पातीं ऐसे में वेस्ट डीकम्पोजर भूमि को कम से कम समय में उपजाऊ तथा उर्वर बनाए रखने में अत्यधिक कारगर है। बस आप 200 से 500 लीटर वेस्ट डीकम्पोजर का प्रयोग सामान्यतः
फसलों पर हर सिचाई के साथ प्रयोग करें। यदि भूमि ज्यादा कमजोर है तो देसी गोबर खाद आदि का प्रयोग कर 500 स 1000 लीटर या इससे भी अधिक मात्रा का प्रयोग हरेक सिंचाई पर करनें से भूमि बहुत ही जल्दी मक्खन जैसी मुलायमए गहरी भूरीए भुरभुरी होने के साथ स्वास्थ्य और उपजाऊ बनने लगती है तथा साथ ही साथ भूमि का जैवाँश कार्बन भी बढने से खेत मे केचुओं की संख्या में भारी वृद्धि होने होने से सभी पोषक तत्व भूमि मे घुलनशील अवस्था में आने के कारण फसलों का उत्पादन भी बढने लगता है तथा लगातार वेस्ट डीकम्पोजर के प्रयोग के कारण उपजाऊ मिट्टी के कालम में भी बढोत्तरी होने लगती है जिसके कारण भूमि की जलधारण क्षमता मे वृद्धि होने से वर्षा जल भी भूमि द्वारा आशानी से शोख लिया जाता है तथा भूमि में जैवाँश कार्बन के बढने से केचुऔं तथा सूक्ष्मजीवों की संख्या में भारी वृद्धि होती है।
फसल बढवार के लिए छिड़कावः
फसलों की बढवार के लिए वेस्ट डीकम्पोजर का ताजा एवं तैयार घोल की 20 से 30रू का घोल नर्शरीए नई उगी 15 .20 वाली मुलायम पत्तियों वाली फसलो के लियेए 40. 50रू सामान्य फसलें के लिये तथा 60.70रू घोल का छिड़काव बागवानी फसलें तथा मजबूत पत्तियों वाली फसलों पर हरण्हफ्ते प्रयोग करते रहने से फसलें की बढवार बहुत ही अच्छी तथा उत्पादन ज्यादा मिलता है।
कीटव्याधियों की रोकथामः
आमतौर पर फसलें उगने के बाद से ही कीटव्याधियों की चपेट में आने लगती हैं। इसके लिये भी वेस्ट डीकम्पोजर का ताजा एवं तैयार मे दशपरणी शत जिसमें य नीमए बकायनए आखए धतूराए कांग्रेस घासए अरंडए शरीफाए करंजए बेशरमए अमरबेल आदि अथवा वे कड़वे पत्ते जो आपके आस पास उप्लब्द्ध हों की 10 किलों मात्रा 50 लीटर वेस्ट डीकम्पोजर के घोल में बारीक काट कूट कर द्ध 10 .15 दिन रखनेके बाद तैयार हो जाता है। इसका 7.10रू का हर हफ्ते शुरू से ही प्रयोग करने से सभी प्रकार की कीटव्याधियों के प्रकोप से बचा जा सकता है।
लवणीय तथा क्षारीय एंव समस्या ग्रस्त भूमियों के सुधार के लिएः
देश भर में भूमी का बडा भाग समस्या ग्रस्त भूमियों की श्रेणी में आता है जिन भूमियों में उत्पादन या तो अच्छा नहीं मिलता अथवा यहां तक कि बीजों का अंकुरण भी ठीक प्रकार से नहीं होताए इस प्रकार की भूमियों में अच्छी गोबर की खाद के साथ या हरी खाद के प्रयोग के साथण्500 से 2000 लीटर प्रति एकड़ की दर से वेस्ट डीकम्पोजर का हर सिचाई पर प्रयोग करते रहने से भूमि शुधार तथा फसलोत्पादन में काफी अच्छा शुधार देखने को मिलता है। वेस्ट डीकम्पोजर के लगातार प्रयोग से भूमि जैवाँश स्तर मे शुधार के साथ साथ भूमि की भौतिकए रसायनिक तथा जैविक दशा मे उत्रोतर शुधार होता है साथ ही साथ भूमी मेंण्केचुओं तथाअन्य सू्क्ष्मजीवों की तादाद मे वृद्धि होने से भमि रंध्राकाश मेंण्शुधार होने से भूमि की जलधारण क्षमता में भी वृद्धि होती है।
वेस्ट डीकम्पोजर के प्रयोग से लाभः
1. बीजोपचार द्वारा जमाव प्रतिशत में शुधार तथा अंकुरण जल्दी आता है।
2. फसल में फुटाव तथा किल्लों की संख्या मे वृद्धि से उत्पादन बहतर होता है।
3. खेत के जैवाँश तथा जलधारण क्षमता मे वृद्धि होने से भूमि के उपजाऊ कालम में वृद्धि होती है।
4. फसलों को पोषकतत्व आसानी से उपलब्ध होने लगते हैं।
5. फसलों पर कीटव्याधियों का प्रकोप कम होता है।
6. फल व शब्जियों की गुणवत्ता तथा भंडारण क्षमता में वृद्धि होती है।
7. खेत में खरपतवारों के प्रकोप में कमी तथा भूमि मुलायम होने के कारण खरपतवार आसानी से निकल जाते हैं।
8. गोबर तथा कूड़े कचरे से खाद अच्छी तथा कम समय में ही तैयार हो जाती है।
9. खेती में उवर्कोंए कीटनाशकों तथा खरपतवार नाशकों के खर्च मे काफी कमी आती है।
10. वेस्ट डीकम्पोजर सेण्तैयार फसलेंए फल तथा शब्जियां जल्द तथा महंगी बिकतीं हैं।
11 जुताई, सिचाई तथा कीटनाशकों के खर्च में कमीण्आती है।
12. एक बार खरीदने के बाद किसान को बार बार खरीदने की जरूरत नहींण् पड़ती।
13 एक किसान से ही सैकड़ों व हजारों किसानों को बांटा जा सकता है।
14. मात्र 20 रूपये की लागत से आजीवन प्रयोग कर लाभ उठाया जा सकता है।
वेस्ट डीकम्पोजर के प्रयोग करने में सावधानियां
1. नंगे हाथों से वेस्ट डीकम्पोजर का प्रयोग कदापि न करें।
2. वेस्ट डीकम्पोजर तैयार करतेण् समय इसे बच्चों तथा पशुओं की पहुंच से दूर रखें।
3. छिड़काव तथा बीजोपचार के लिए हमेशा ताजे एवं तैयार घोल का ही प्रयोग करें।
4. बीजोपचार कर बीज को ज्यादा समय तक न छोड़कर जल्दी ही बुवाई करें।
5. घोल बनाने के लिए हमेशा स्वच्छ पानी का प्रयोग करें।
6. गुड़ की जगह लाट या शीरे का प्रयोग कर सकते हैं।
7. गुड़ के स्थान पर चीनी का प्रयोग न करें।
8. घोल के ड्रम को हमेशा ढक कर रखें