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Sunday, August 21, 2022

1857 क्रांति के महानायक नाना साहब ने बिठूर से की थी क्रांति की शुरुआत

बिठूर । बिठूर जोकि अपने अस्तित्व में 18 57 क्रांति से जुड़ी हुई यादों को संजोए हुए आज भी अंग्रेजों की दासता से जुड़ी हुई कहानियों को बयां कर रहा है। यह वही भूमि है जहां से नाना साहब रानी लक्ष्मीबाई अजीमुल्ला खान तात्या टोपे और ना जाने कितने अनगिनत वीरों ने 1857 क्रांति का बिगुल फूंका था। वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई जिनका बचपन बिठूर में बीता उन्होंने यहीं पर नाना साहब तात्या टोपे से युद्ध कौशल घुड़सवारी सीखी । 18 57 क्रांति में रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी तलवार बाजी से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। नाना साहब पेशवा जिन्हें हम धोंडोपंत के नाम से भी जानते हैं 1820 में बिठूर की पावन नगरी में 1800 महाराष्ट्रीयन परिवारों के साथ अंग्रेजों से मुचेटा लेने के लिए आए थे। नाना साहब के विशेष सलाहकार और युद्ध कौशल में लोहा मनवा चुके तात्या टोपे ने 1857 क्रांति में अंग्रेजों के दांत खट्टे किए थे।
*बिठूर के ऐतिहासिक किले का इतिहास*
बिठूर के नाना राव पार्क के दाहिने ओर आज भी खंडहर के रूप में स्थित है बाजीराव पेशवा द्वितीय द्वारा बनवाया गया, महल जिसे उस समय में शनिवार वाड़ा के नाम से जाना जाता था हुबहू ऐसा ही शनिवार वाड़ा आज भी पूना में बना हुआ है। इसी महल में 1857 की क्रांति से पूर्व नाना साहब, रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, रहा करते थे यहीं पर रानी लक्ष्मीबाई ने तात्या टोपे से युद्ध कौशल सीखा था। इसी महल में 1857 क्रांति की मशाल पहली बार जलाई गई थी। लेकिन अब यह शनिवार वाड़ा पूरी तरीके से जंगल में तब्दील हो चुका है।
*पार्क में स्थित है ऐतिहासिक कुआं*
बाजीराव पेशवा द्वितीय के साथ आए परिवारों की पेयजल व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए पेशवा महल के इर्द-गिर्द सात कुओ का निर्माण सन 1835 में बाजीराव पेशवा द्वितीय द्वारा कराया गया था। बाकी कुए तो समाप्त हो चुके हैं। लेकिन अभी भी एक कुआं जो महल के अंदर था वह शेष है। यह वही कुआं है जिससे रानी लक्ष्मीबाई पानी पीकर अपनी प्यास बुझाया करती थी।
*पार्क में बना ध्वज स्तंभ*
यह वही स्थान है जहां पर नाना साहब, रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, अजीमुल्ला खान, 1857 क्रांति से पूर्व ध्वज फहराया करते थे। इसी स्थान पर बैठकर 18 57 क्रांति से जुड़ी युद्ध की रणनीति बनाई जाती थी। जहां पर आज भी 15 अगस्त और 26 जनवरी को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजाराम पंत मोघे के वंशज प्रपोत्र मधुकर राव मोघे राष्ट्रीय ध्वज लगाने का कार्य करते हैं जिसे स्थानीय चेयरमैन फहराया करती हैं। जिनके पूर्वजों ने देश को आजाद कराने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया आज उन्हीं के वंशज मुफलिसी का जीवन बिता रहे हैं।
*संग्रहालय में आज भी संग्रहित है आजादी से जुडी ऐतिहासिक धरोहर*
बिठूर नाना राव पेशवा स्मारक में  आज भी 1857 क्रांति से जुड़ी यादों को संजोए हुए हैं। संग्रहालय का निर्माण सन 2005 में कराया गया था इस संग्रहालय में पुराने सिक्के, तात्या टोपे का खंजर, पुराने ऐतिहासिक दस्तावेज, 1857 की क्रांति में क्यों मिलाई गई तलवारे बंदूके को संजो कर रखा गया है। जिन्हें देखते ही 1857 क्रांति का युद्ध मानव अपने आप आंखों के सामने चित्रित होने लगता है।    

रिपोर्ट : मधुकर राव मोघे
अक्रॉस टाइम्स हिंदी समाचार पत्र

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