रायबरेली। रिफार्म क्लब में चल रहे मानस संत सम्मेलन के प्रथम दिवस अनंत विभूषित श्री कामदगिरी पीठाधीश्वर जगद्गुरू रामानंदाचार्य राम स्वारूपाजी महाराज चित्रकूट, मध्य प्रदेश विराजमान हुए। पादुका पूजन सम्मेलन समिति के अध्यक्ष गणेश गुप्ता ने किया। यज्ञाचार्य पं0 देवी प्रसाद पाण्डेय ने सम्पन्न कराया। मानस संत सम्मेलन समिति के समस्त पदाधिकारियों व गणमान्य नागरिकों को जगद्गुरू का माल्यार्पण कर आशीर्वाद प्राप्त किया। कार्यक्रम के शुभारम्भ को निवेदित करते हुए विद्वान संचालक डा0 अम्बिकेश त्रिपाठी ने जगद्गुरू से आशीर्वचन प्रदान करने का आग्रह किया। जगद्गुरू रामस्वरूपा जी ने श्री रामजनम पर विस्तार से चर्चा प्रारम्भ करने के पूर्व माता पार्वती द्वारा भगवान शिव से संवाद को विस्तार से बताया। जगद्गुरू ने कहा कि सत्यकर्म, दुर्भाग्य, पुरूषार्थ और स्वीकार पर भी चर्चा किया। उन्होने कहा कि जब-जब होई धरम के हानी, जब धर्म को हानि होना लगता है तो परमात्मा का अवतरण होता है। विस्तार से मानवीय गुण सम्बन्ध एवं पशुओं के आचरण पर प्रकाश डालते हुए श्री स्वरूपा नंद महाराज ने कहाकि जन्म लेने के बाद पुत्र जैसे-जैसे बड़ा होता है माँ से उसका सम्बन्ध प्रगाड हो जाता है जबकि पशु जैसे-जैसे यौवनता की ओर बढ़ता है अपने सम्बन्ध को वह भूल जाता है। यही अंतर मानव व पशु में है। कभी-कभी मानव सम्बन्धों के बावजूद विरोध में खड़ा हो जाता है। उदाहरण स्वरूप प्रह्लाद और हिरणाकश्यप और विभिषण-रावण के सम्बन्धों पर गुरू जी से मार्मकी चर्चा की। जगद्गुरू ने कहा कि गुरू बनना आसान है गुरू धर्म का पालन करना कठिन है। माता पिता बनना आसान है, लेकिन उसके धर्म का पालन करना कठिन है। इसी प्रकार पुत्र-पुत्री बनना आसान है परन्तु पुत्र-पुत्री धर्म का पालन करना व पुत्रवधु धर्म का पालन करना कठिन है। जिस युग में भगवान श्रीराम का जन्म हुआ उसी युग में परशुराम जी का भी जन्म हुआ। परशुराम जी बहुत ही ताकतवर थे उनके फरसा में बहुत ताकत थी। उन्होने सहस्त्र नामक दैत्य को खत्म किया था। परशुराम जी रावण के भी खत्म कर सकते थे। तो फिर राम के जन्म का उद्देश्य क्या था। एक ही काल खण्ड में दोनो भगवान का अवतरण क्यों जगतगुरू बड़ी ही मार्मीक शब्दों में समझाते हुए कहाकि भगवान परशुराम राक्षसों को तो खत्म कर सकते है परन्तु राक्षस-तव्व को खत्म करने के लिए भगवान श्रीराम का इस धरती पर अवतरण हुआ। इसी क्रम में जगद्गुरू ने माता कौशल्या और माता अनुसुइया का वर्णन करते हुए कहा कि दोनो माताओं में यह अंतर है कि कौशल्या के गोद में जब भगवान राम आये तो वह चतुर्भुज रूप में दर्शन दिये। माता कौशल्या ने भगवान से विनम्र प्रार्थना किया कि प्रभु बच्चें इस रूप में नहीं आते है आप बाल रूप धारण करें और रोना शुरू करे तभी लोग समझे के की बालक का जन्म हुआ है। उनकी बात पर भगवान से बाल रूप धारण किया। जबकि माता अनुसुइया के समक्ष ब्रम्हा, विष्णु, महेश तीनो अपने भव्य एवं विराट रूप में प्रस्तुत हुए तो माता अनुसुइया ने उनसे बाल रूप धारण करने के लिए प्रार्थना नहीं किया। कमण्डल से जल लेकर और इन तीनों को बाल रूप में आने हेतु छिड़क दिया। फिर ब्रम्हा, विष्णु, महेश छः माह के बच्चें का रूप धारण किया। इसके साथ ही गुरू जी ने राम परशुराम संवाद, तुलसी और सालीग्राम बनने की कथा सुनायी। इसी प्रकार गुरूजी ने राम के अवतरण के सम्बन्ध में कई मार्मीक कथा को सुनाया। श्रोता भाव विभोर हुए पूरे प्रवचनकाल में कोई श्रोता उठ कर जाने को तैयार नहीं हुए। सभी मूर्त के समान बैठ कर कथा श्रवण करते रहे। इस अवसर पर उमेश सिकरिया, सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘मन्टू’, राकेश तिवारी, राधेश्याम कर्ण, राकेश कक्कड़, गोपाल श्रीवास्तव, डा0 तारा जायसवाल, राघवेन्द्र द्विवेदी, राजबहादुर सिंह, सुक्खू लाल चांदवानी, स्वामी ज्योर्तिमयानन्द जी महाराज, अतुल भार्गव, करूणा शंकर त्रिपाठी, ललित बाजपेयी, महेन्द्र अग्रवाल, शंकर लाल गुप्ता, आशीष त्रिपाठी आदि बड़ी संख्या में भक्तश्रोतागण उपस्थित रहे।
जावेद आरिफ ब्यूरो चीफ रायबरेली
अक्रॉस टाइम्स हिंदी समाचार पत्र